पतझर नहीं तो बोल रे मानुस,
बसंत का है क्या मोल ?
फिर जीवन ठूठ सा क्यों कहता ?
जीवन पुष्प सा तू बोल।
दुःख न हो तो बोल रे मानुस,
सुख का है क्या मोल,
फिर जीवन अश्क सा क्यों कहता ?
जीवन आस सा तू बोल।
दर्द न हो तो बोल रे मानुस,
हंसी का है क्या मोल,
फिर जीवन श्राप सा क्यों कहता ?
जीवन छंद सा तू बोल।
जरा नहीं तो बोल रे मानुस,
यौवन का है क्या मोल,
फिर जीवन बोझ सा क्यों कहता ?
यह जीवन उमंग सा तू बोल।
मृत्यु नहीं तो बोल रे मानुस,
जन्म का है क्या मोल,
फिर जीवन क्षणभंगुर क्यों कहता,
जीवन अमरत्व सा तू बोल ।
( जयश्री वर्मा )
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