मित्रों ! मेरी यह रचना मासिक पत्र " मृगपाल " सितम्बर 1995 अंक में जो कि झाँसी से प्रकाशित है में प्रकाशित हुई। आप भी इस रचना को पढ़ें।
हर वर्ष बदलते मौसम सी,
हर वर्ष बदलते मौसम सी,
कई रूप रंग कई वर्णों सी,
चंचल चंदा की किरणों सी,
पुष्पों पे रंग बलिहारी सी,
मेरे प्रिय की बतियाँ री सखि,
हैं बहुत मधुर - मतवारी सी।
पावन गंगा की लहरों सी,
बसंत की पीत छटा जैसी,
हरियाली सी मनहारी सी,
मेरे प्रिय की बतियाँ री सखि,
हैं बहुत मधुर - मतवारी सी।
आह में अश्क सरीखी सी,
गान की झनक फुलझरी सी,
स्वप्नों में स्वप्न परी जैसी,
रंगों की प्रेम फुहारी सी,
मेरे प्रिय की बतियाँ री सखि,
हैं बहुत मधुर - मतवारी सी।
गोरी बहियों के कंगन सी,
बहके प्रेम की अनबन सी,
पावों में रुनझुन पायल सी,
कभी इठलाती बंजारन सी,
मेरे प्रिय की बतियाँ री सखि,
हैं बहुत मधुर - मतवारी सी।
माथे पे सोहित बिंदिया सी,
नासिका की सुंदर नथिया सी,
कामिनी के तीखे कटाक्ष जैसी,
मनभावनी अँखियाँ कजरारी सी,
मेरे प्रिय की बतियाँ री सखि,
हैं बहुत मधुर - मतवारी सी।
कुछ खट्टी सी,कुछ मीठी सी,
कुछ तीखी सी,कुछ प्यारी सी,
कुछ गुनगुन सी,कुछ रुनझुन सी,
कुछ हलकी सी,कुछ भारी सी,
मेरे प्रिय की बतियाँ री सखि,
हैं बहुत मधुर - मतवारी सी।
( जयश्री वर्मा )
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