Monday, April 18, 2022

नया अफसाना

अजी! शुक्रिया आपका,जो आप मुस्कुराए हैं ,
के आंखों में तमाम सारे,ख्वाब झिलमिलाए हैं,
जी गया हूँ,नई जिंदगी,इन्ही चंद लम्हों में मैं ,
आप मेरे वज़ूद पे जैसे बहार बन के छाए हैं ।

चलिए! न कुबूल करें आप,तो कोई बात नहीं ,
पर नज़रों का उठना-झुकना,भी तो झूठ नहीं ,
ठिठकना नज़रों का मुझ पर,फिर लजा जाना ,
अनजानी डोर से मुझ संग,यूँ बंधते चले जाना ।

पास से मेरे बार-बार,इठला के गुज़र जाना ,
खिलखिलाहटों में रस घोल के,बातें बनाना ,
हम भी सब जानते हैं पर,सब्र किये रहते है ,
के आपके इकरार का,इंतज़ार किये बैठे हैं।

ऐसी तो कोई रात नहीं,जिसका सवेरा न हो ,
प्रेम के सिलसिले में,ख्वाबों का बसेरा न हो,
कि देखो तो शाम,कुछ मीठा सा कह रही है ,
रात भी हौले-हौले से,जज़्बातों में बह रही है।

काश के हम मिलके,अपनी नई दास्तान बनाएं ,
इस महकते से मौसम का,नया गीत गुनगुनाएं ,
और लगन अपने दिल की,इक-दूजे को सुनाएं ,
यूँ वक्त से लम्हे चुरा के,नया अफसाना बनाएं।

                                                        - जयश्री वर्मा