Saturday, July 27, 2019

ऐसे कितने ही जाधव

न जाने कितने जाधव,कितनी विदेशी जेलों में फंसे हैं,
आँखों में झाइयाँ,शरीर है ढांचा,पर बेड़ियों में कसे हैं।

ये गालियों और लातों की रोटी से,मन का पेट भरते हैं ,
कल की आशाएं संजोए ये,रोज तिल-तिल के मरते हैं।

ये रात-रात,दर्द-दहशत संग,ख्यालों में जागा करते हैं ,
और दिन-दिन भर,जान-रहम की,दुआ माँगा करते हैं।

हर त्यौहार,सपनों में ही ये,अपनों के संग-साथ जीते हैं ,
उनके घर भी होली,क्रिसमस,बैसाखी,ईद कहाँ मनते हैं?

घर की दहलीज़ पे,उनकी आहट की उम्मीद पलती है,
पत्नियाँ उहापोह में,तीज-करवाचौथ कर मांग भरती हैं।

कितने बच्चों को अपने पिता की स्मृति ही नहीं कुछ भी,
दया-तिरस्कार ही नियति है,यही उनका जीवन सत्य भी।

बच्चे भी सुनी बातों,और फोटो के संग,यूँ ही पल जाते हैं ,
हालात के संग वे सब,खुद-ब-खुद,बस यूँ ही ढल जाते हैं।

ये बच्चे मन की उम्मीदों को,मन में ही दफ़न कर लेते हैं,
नहीं है पिता का साया,जान के कोई सवाल नहीं करते हैं।

बूढ़े माँ-बाप की आँखों के,उमड़ते समुंदर भी सूख जाते हैं,
अंतिम क्षण में औलाद को,देख पाने के ख्वाब टूट जाते हैं।

देशों की सरकारों के प्रयास भी नाकाम ही साबित होते हैं,
मीडिया वाले बस उम्मीद,कभी असमर्थता का राग रोते हैं।

ऐसे ही,कितने ही जाधव,न जाने,कितनी ही जेलों में फंसे हैं,
जिनका शरीर उनके साथ है,पर दिल अपने देशों में बसे हैं।

                                                                        - जयश्री वर्मा  


Monday, July 1, 2019

कहाँ से लाओगे ?

यूँ चाहतों का जाल,भेद कर,तुम कहाँ जाओगे ?
जो गर चाहोगे भूलना तो भी,भुला नहीं पाओगे ,
के हमारा हंसना,रूठना,उलझना,मान-मनुहार ,
बंध गए हो जिस बंधन में,वो कैसे काट पाओगे ?

वो मेरा इंतज़ार करना,रूठना,फिर मान जाना ,
फिर तुम्हारी इक इच्छा पे,वो मेरा कुर्बान जाना ,
तमाम पहरों को तोड़,मैं तुम तक चली आती थी ,
दुस्साहसपूर्ण ये सब बातें,तुम कैसे भूल पाओगे ?

मुहब्बत में दूरियां,बेचैनियाँ बढ़ाएंगी,मैंने माना ,
अगर राहें जिक्र करें मेरा,तो तुम लौट ही आना ,
के फूल,बाग़,नदी,और गलियां पूछेंगे बार-बार , 
अपने ही क़दमों के खिलाफ,कैसे बढ़ पाओगे ?

ऐसे किसी के जज़्बात से,खिलवाड़ नहीं करते ,
गर किसी से हो प्यार तो,यूँ तकरार नहीं करते ,
छुड़ाया जो हाथ हमसे,हम रो ही देंगे कसम से ,
मेरी नींदें उजाड़,अपने ख्वाब कैसे बसा पाओगे ?

ढूंढोगे लाख उम्र के बीते लम्हे,पर ढूंढें न मिलेंगे ,
बीते मौसम जैसे फूल,दूसरे मौसमों में न खिलेंगे ,
किसने कहा के काँच,टूट के फिर जुड़ सकता है ?
टूटी हुई उम्मीदों की लौ,फिर कैसे जगा पाओगे ?
                                           
के गर जा ही रहे हो,इक बार मुड़ कर देख लेना ,
मेरी आँखों की हसरत,इक पल को महसूस लेना ,
ये चाहत की ख्वाहिश,दोनों तरफ बराबर ही थी ,
ये सच झुठलाने की हिम्मत,तुम कहाँ से लाओगे ?

                                                                   - जयश्री वर्मा