Monday, July 1, 2019

कहाँ से लाओगे ?

यूँ चाहतों का जाल,भेद कर,तुम कहाँ जाओगे ?
जो गर चाहोगे भूलना तो भी,भुला नहीं पाओगे ,
के हमारा हंसना,रूठना,उलझना,मान-मनुहार ,
बंध गए हो जिस बंधन में,वो कैसे काट पाओगे ?

वो मेरा इंतज़ार करना,रूठना,फिर मान जाना ,
फिर तुम्हारी इक इच्छा पे,वो मेरा कुर्बान जाना ,
तमाम पहरों को तोड़,मैं तुम तक चली आती थी ,
दुस्साहसपूर्ण ये सब बातें,तुम कैसे भूल पाओगे ?

मुहब्बत में दूरियां,बेचैनियाँ बढ़ाएंगी,मैंने माना ,
अगर राहें जिक्र करें मेरा,तो तुम लौट ही आना ,
के फूल,बाग़,नदी,और गलियां पूछेंगे बार-बार , 
अपने ही क़दमों के खिलाफ,कैसे बढ़ पाओगे ?

ऐसे किसी के जज़्बात से,खिलवाड़ नहीं करते ,
गर किसी से हो प्यार तो,यूँ तकरार नहीं करते ,
छुड़ाया जो हाथ हमसे,हम रो ही देंगे कसम से ,
मेरी नींदें उजाड़,अपने ख्वाब कैसे बसा पाओगे ?

ढूंढोगे लाख उम्र के बीते लम्हे,पर ढूंढें न मिलेंगे ,
बीते मौसम जैसे फूल,दूसरे मौसमों में न खिलेंगे ,
किसने कहा के काँच,टूट के फिर जुड़ सकता है ?
टूटी हुई उम्मीदों की लौ,फिर कैसे जगा पाओगे ?
                                           
के गर जा ही रहे हो,इक बार मुड़ कर देख लेना ,
मेरी आँखों की हसरत,इक पल को महसूस लेना ,
ये चाहत की ख्वाहिश,दोनों तरफ बराबर ही थी ,
ये सच झुठलाने की हिम्मत,तुम कहाँ से लाओगे ?

                                                                   - जयश्री वर्मा  

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका Sweta sinha जी !🙏 😊

      Delete
  2. मुहब्बत में दूरियां,बेचैनियाँ बढ़ाएंगी,मैंने माना ,
    अगर राहें जिक्र करें मेरा,तो तुम लौट ही आना ,...वाह! बहुत संजीदा भाव। बहुत सुंदर रचना। बधाई और आभार।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यवाद आपका विश्वमोहन जी !🙏 😊

      Delete
  3. आभार आपका अनुराधा चौहान जी !🙏 😊

    ReplyDelete
  4. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका 🙏 😊

    ReplyDelete
  5. लाजवाब .नि:शब्द कर दिया

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आपका संजय भास्कर जी !🙏 😊

      Delete