यूँ चाहतों का जाल,भेद कर,तुम कहाँ जाओगे ?
जो गर चाहोगे भूलना तो भी,भुला नहीं पाओगे ,
के हमारा हंसना,रूठना,उलझना,मान-मनुहार ,
बंध गए हो जिस बंधन में,वो कैसे काट पाओगे ?
वो मेरा इंतज़ार करना,रूठना,फिर मान जाना ,
फिर तुम्हारी इक इच्छा पे,वो मेरा कुर्बान जाना ,
तमाम पहरों को तोड़,मैं तुम तक चली आती थी ,
दुस्साहसपूर्ण ये सब बातें,तुम कैसे भूल पाओगे ?
मुहब्बत में दूरियां,बेचैनियाँ बढ़ाएंगी,मैंने माना ,
अगर राहें जिक्र करें मेरा,तो तुम लौट ही आना ,
के फूल,बाग़,नदी,और गलियां पूछेंगे बार-बार ,
अपने ही क़दमों के खिलाफ,कैसे बढ़ पाओगे ?
ऐसे किसी के जज़्बात से,खिलवाड़ नहीं करते ,
गर किसी से हो प्यार तो,यूँ तकरार नहीं करते ,
छुड़ाया जो हाथ हमसे,हम रो ही देंगे कसम से ,
मेरी नींदें उजाड़,अपने ख्वाब कैसे बसा पाओगे ?
ढूंढोगे लाख उम्र के बीते लम्हे,पर ढूंढें न मिलेंगे ,
बीते मौसम जैसे फूल,दूसरे मौसमों में न खिलेंगे ,
किसने कहा के काँच,टूट के फिर जुड़ सकता है ?
टूटी हुई उम्मीदों की लौ,फिर कैसे जगा पाओगे ?
के गर जा ही रहे हो,इक बार मुड़ कर देख लेना ,
मेरी आँखों की हसरत,इक पल को महसूस लेना ,
ये चाहत की ख्वाहिश,दोनों तरफ बराबर ही थी ,
ये सच झुठलाने की हिम्मत,तुम कहाँ से लाओगे ?
- जयश्री वर्मा
जो गर चाहोगे भूलना तो भी,भुला नहीं पाओगे ,
के हमारा हंसना,रूठना,उलझना,मान-मनुहार ,
बंध गए हो जिस बंधन में,वो कैसे काट पाओगे ?
वो मेरा इंतज़ार करना,रूठना,फिर मान जाना ,
फिर तुम्हारी इक इच्छा पे,वो मेरा कुर्बान जाना ,
तमाम पहरों को तोड़,मैं तुम तक चली आती थी ,
दुस्साहसपूर्ण ये सब बातें,तुम कैसे भूल पाओगे ?
मुहब्बत में दूरियां,बेचैनियाँ बढ़ाएंगी,मैंने माना ,
अगर राहें जिक्र करें मेरा,तो तुम लौट ही आना ,
के फूल,बाग़,नदी,और गलियां पूछेंगे बार-बार ,
अपने ही क़दमों के खिलाफ,कैसे बढ़ पाओगे ?
ऐसे किसी के जज़्बात से,खिलवाड़ नहीं करते ,
गर किसी से हो प्यार तो,यूँ तकरार नहीं करते ,
छुड़ाया जो हाथ हमसे,हम रो ही देंगे कसम से ,
मेरी नींदें उजाड़,अपने ख्वाब कैसे बसा पाओगे ?
ढूंढोगे लाख उम्र के बीते लम्हे,पर ढूंढें न मिलेंगे ,
बीते मौसम जैसे फूल,दूसरे मौसमों में न खिलेंगे ,
किसने कहा के काँच,टूट के फिर जुड़ सकता है ?
टूटी हुई उम्मीदों की लौ,फिर कैसे जगा पाओगे ?
के गर जा ही रहे हो,इक बार मुड़ कर देख लेना ,
मेरी आँखों की हसरत,इक पल को महसूस लेना ,
ये चाहत की ख्वाहिश,दोनों तरफ बराबर ही थी ,
ये सच झुठलाने की हिम्मत,तुम कहाँ से लाओगे ?
- जयश्री वर्मा
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका Sweta sinha जी !🙏 😊
Deleteमुहब्बत में दूरियां,बेचैनियाँ बढ़ाएंगी,मैंने माना ,
ReplyDeleteअगर राहें जिक्र करें मेरा,तो तुम लौट ही आना ,...वाह! बहुत संजीदा भाव। बहुत सुंदर रचना। बधाई और आभार।
सादर धन्यवाद आपका विश्वमोहन जी !🙏 😊
Deleteआभार आपका अनुराधा चौहान जी !🙏 😊
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका 🙏 😊
ReplyDeleteलाजवाब .नि:शब्द कर दिया
ReplyDeleteसादर आभार आपका संजय भास्कर जी !🙏 😊
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