Sunday, December 5, 2021

ज़िन्दगी इक सवाल


ज़िन्दगी क्या है ?

क्या ज़िन्दगी सवाल है ?
शायद ये सवाल है------!
मुझे किसने है भेजा?कहाँ से हूँ मैं आया ?
क्या उद्देश्य है मेरा?ये जन्म क्यूँ है पाया ?
कब तक मैं हूँ यहां?और कहाँ मैं जाऊँगा ?
क्या छूटेगा मुझसे?और क्या मैं पाऊँगा ?
अपना कौन है मेरा?और पराया है कौन ?
किससे बोलूँ मैं?आखिर क्यों रहूँ मैं मौन ?
जिंदगी प्रश्नों से बुना इक जाल है।
हाँ !ज़िन्दगी इक सवाल है !


क्या जिन्दगी खूबसूरत है?
शायद ये ख़ूबसूरत है------

अनन्त ब्रह्माण्ड में विचरती पृथ्वी निराली ,
हर अँधेरी रात्रि उपरान्त सुबह की लाली ,
फूलों संग खेलते हुए ये भँवरे और तितली ,
सप्तरंगी इन्द्रधनुष और चंचल सी मछली ,
मधुर झोंकों संग झूमती बाग की हरियाली,
क्षितिज पे अम्बर से मिले धरती मतवाली।
जिंदगी विधाता की गढ़ी मूरत है।
हाँ !ज़िन्दगी खूबसूरत है !

क्या ज़िन्दगी प्यार है?
शायद ये प्यार है------
रिश्तों का प्यार और सारे बंधनों का सार ,
पाने और चाहने की इक मीठी सी फुहार ,
हौसलों से हासिल इक जीत का उल्लास ,
दुःख,सुख,प्रेम का है ये अनोखा अहसास ,
दोनों हाथों में भरके बहार को समेट लेना ,
कुछ प्यार बांटना कुछ हासिल कर लेना।
जिंदगी प्रेम का अजब व्यापार है।
हाँ !ज़िन्दगी इक प्यार है !

क्या जिन्दगी तलाश है?
शायद ये तलाश है ------
लक्ष्य कोई ढूंढना और फिर पाने की प्यास,
सतत् कोशिशों का इक निरंतर सा प्रयास,
तलाश स्वयं की,जन्म-मृत्यु,लोक-परलोक,
क्या सम्हालूँ,क्या जाने दूँ ,किसको लूँ रोक,
ज़िन्दगी की तलाश में उलझ-उलझ गया मैं,
कभी खुद के अधूरेपन से सुलग सा गया मैं,
जाना-जिंदगी तो बस आती-जाती साँस है।
हाँ! ज़िन्दगी इक तलाश है!

क्या ज़िन्दगी कहानी है?
शायद ये कहानी है ------
अनादि काल से जीते-मरते असंख्य अफ़साने,
इतिहास के संग जो सुने-कहे गए जाने-अंजाने,
हर जीवन आपस में मिलती-जुलती कहानी है,
स्वयं से स्वयं को रचने की ये कथा अंजानी है,
हमारा भूत और भविष्य ही हमारी ज़िंदगानी है,
आज की हमारी कहानी ये,कल होनी पुरानी है,
जिंदगी कुछ अपनी कुछ वक्त की मनमानी है।
हाँ !ज़िन्दगी इक कहानी है !

जिंदगी के सवाल मैं उलझाता-सुलझाता रहा,
जिंदगी की खूबसूरती में खुद को डुबाता रहा,
प्यार पगी गरमाहटों को मैं हृदय में भरता रहा,
कुछ पाने की तलाश अनवरत ही करता रहा,
अपूर्ण,अतृप्त,अनभिज्ञ,क्यों महसूस होता है?
सब कुछ है पास पर,क्यों ये अंतर्मन रोता है?
खूब पढ़ा,परखा फिर भी अजब ये रवानी है,
ज़िंदगी की परिभाषा,उतनी ही अनजानी है।
जिंदगी की परिभाषा-
अब भी उतनी ही अनजानी है।

                                                - जयश्री वर्मा

 

Monday, May 24, 2021

मैं सम्पूर्ण सार लिए

जैसेकि ये,निरंतर भागती सी राहें,दिन-रात चलें ,
सीधे या दाएं-बाएं घूम कर,इक दूजे से जा मिलें ,
या कितनी ही ये दिन-रात दौड़ने की चाहत में रहें ,
पर आखिर में कहीं पे तो,पूर्ण हो रुकना पड़ता है।
 
जैसे कि सारी नदियाँ,लहराती-बलखाती सी ,
सारी धरा को बाहों में,समेट के इठलाती सी ,
कितनी ही ये निर्बाध,निरंकुश,कलकल दौड़ें ,
पर आखिर में तो,सागर में मिलना पड़ता है।
 
ये उन्मुक्त,आवारा,स्वच्छंद से बादल कजरारे ,
इक नन्ही सी स्वाति बूँद का,दम्भ मन में धारे ,
जब ये दम्भ की भटकन,बोझिल बन जाती है,
तो आखिर तो,धरती पे बरसना ही पड़ता है।
 
अपने रूप-यौवन गुमान में,इठलाता ये सावन ,
इसका अमरता का भ्रम भी तो,बस है मनभावन,
जब शरद ऋतु आकरके,दरवाजा खटकाती है,
तो आखिर में तो पतझड़ में,बदलना पड़ता है। 

इस उत्सुक जीवन के रंग भी,अजीब निराले हैं ,
उन्मत्त सी बहती लहरों का तो उत्तर,ये किनारे हैं ,
इन राहों का उद्देश्य तो,बस गंतव्य पे पहुंचाना है,
और सावन का मतलब तो नव जीवन जगना है।
 
बादलों का धर्म है,बरस के,हर जीव को बचा ले ,
सब की धड़कनों को,ये बस,सुगमता से चला ले ,
कितनी ही सदियाँ आईं और,आके चली भी गईं ,
अपने जीवन का अर्थ भी,इससे कुछ अलग नहीं।
 
क्यूँ तन-मन की भटकन में,यूँ बहकते फिरते हो ,
क्यों प्रेम की,मृगमरीचिका में,स्वयं ही घिरते हो ,
आ जाओ के मैं खड़ी हूँ,तुम्हारा ही इंतज़ार किये ,
तुम्हारे अन्तर्मन के,प्रश्नों का सम्पूर्ण सार लिए।
 
                                                                 - जयश्री वर्मा
 
 

 

Monday, April 5, 2021

कह दीजिये


मित्रों ! मेरी यह रचना दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन प्रा० लिमिटेड द्वारा प्रकाशित पत्रिका " मुक्ता " में प्रकाशित हुई है ! आप भी इसे पढ़ें -



जो होंठों तक गर बात आई,तो कह दीजिये,
के जो दिल अपना सा लगे,उसमें रह लीजिए।

न आएगा यूँ ऐसा सन्देश,बार-बार प्यार का,
यौवन की उमंग और,ऐसा मौसम बहार का,
गर जो खिल रहा हो फूल जीवन की डाल पर,
तो झूमने,महकने और बहकने उसे दीजिए।

इन्तजार नहीं करता कोई किसी का उम्र भर,
रस में भीगे हुए पल,छिन,दिन,ये शामो-सहर,
समेट लो ये सब आंचल में,न बिखरने दो इसे,
गर हो अपनेपन का आभास,तो ठहर लीजिये।

नज़र उठ जाती है,और ठहर जाती है किसी पर,
के कुछ और नहीं है,ये संकेत है,कुछ कहता सा,
इन दौड़ते-हाँफते हुए,जीवन के सवालों के लिए,
स्वछंदता को किसी बंधन में,बंध जाने दीजिए।

ये जो नज़ारे हैं,पल रहे हैं,पलकों की छाँव तले,
साकार होने को हैं बेताब से,बस तुम्हारे ही लिए,
कैसी झिझक,कौन सी गुत्थी है,जो सुलझती नहीं,
बीन के ये सारी खुशियाँ,जीवन में भर लीजिये।  

जो होंठों तक गर कोई बात आई,तो कह दीजिये,
जो दिल कोई अपना सा लगे,उसमें रह लीजिए।

                                                                   - जयश्री वर्मा 

Thursday, February 25, 2021

सुखद एहसास


शब्दों का रह-रह कर के,यूँ बातों में बदलना,
यहाँ-वहाँ,दुनिया-जहान की,बातों का कहना,
यूँही शब्द-शब्द चुनना,और बात-बात बुनना,
तुम संग तुममें ढलना,इक सुखद एहसास है।

मंजिलों की राहें हैं,बड़ी ही उलझी-उलझी सी,
के कभी लगें बोझिल,तो कभी लगें सुलझी सी,
कदम-कदम साथ हो,संग गुँथे हाथों में हाथ हो,
तुम संग यूँ ही टहलना,इक सुखद एहसास है।

वर्षा की मधुर रिमझिम,कली-कली का जगना,
फूल-फूल महकना,और यूँ बगिया का सँवारना,
आना-जाना मौसमों का,क्षितिज का ये मिलना,
तुम संग ये सब देखना,इक सुखद एहसास है।

नदियों का मचलना,सागर में जाकर के मिलना,
चाँद-तारों भरी ये रातें,साँझों का थक के ढलना,
आकाश का अनंत प्यार,धरा पे खिलके पलना,
तुम संग ये सब समझना,इक सुखद एहसास है।

पंछियों के लौटते झुण्ड,दीप-बाती की सार्थकता,
साँसों के ये गीत-राग,और जीवन की ये मधुरता,
प्रेम की मिठास से भरा,छलकता सा प्रेम प्याला,
तुम संग यूँ घूँट-घूँट पीना,इक सुखद अहसास है।

असंख्यों की भीड़ बीच,यूँ तुम्हारा मुझसे मिलना,
स्वप्न,प्रेम,ललक,तृप्ति का,अटूट ये बंधन बनना,
उस अदृश्य शक्ति समक्ष,जिसने जहान बनाया है,
तुम संग यूँ नतमस्तक होना,इक सुखद एहसास है।

                                                                - जयश्री वर्मा