मित्रों ! मेरी यह रचना दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन प्रा० लिमिटेड द्वारा प्रकाशित पत्रिका " मुक्ता " में प्रकाशित हुई है ! आप भी इसे पढ़ें -
जो होंठों तक गर बात आई,तो कह दीजिये,
के जो दिल अपना सा लगे,उसमें रह लीजिए।
न आएगा यूँ ऐसा सन्देश,बार-बार प्यार का,
यौवन की उमंग और,ऐसा मौसम बहार का,
गर जो खिल रहा हो फूल जीवन की डाल पर,
तो झूमने,महकने और बहकने उसे दीजिए।
इन्तजार नहीं करता कोई किसी का उम्र भर,
रस में भीगे हुए पल,छिन,दिन,ये शामो-सहर,
समेट लो ये सब आंचल में,न बिखरने दो इसे,
गर हो अपनेपन का आभास,तो ठहर लीजिये।
नज़र उठ जाती है,और ठहर जाती है किसी पर,
के कुछ और नहीं है,ये संकेत है,कुछ कहता सा,
इन दौड़ते-हाँफते हुए,जीवन के सवालों के लिए,
स्वछंदता को किसी बंधन में,बंध जाने दीजिए।
ये जो नज़ारे हैं,पल रहे हैं,पलकों की छाँव तले,
साकार होने को हैं बेताब से,बस तुम्हारे ही लिए,
कैसी झिझक,कौन सी गुत्थी है,जो सुलझती नहीं,
बीन के ये सारी खुशियाँ,जीवन में भर लीजिये।
जो होंठों तक गर कोई बात आई,तो कह दीजिये,
जो दिल कोई अपना सा लगे,उसमें रह लीजिए।
- जयश्री वर्मा
जो होंठों तक गर कोई बात आई,तो कह दीजिये,
जो दिल कोई अपना सा लगे,उसमें रह लीजिए।
- जयश्री वर्मा
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 7 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मेरी रचना "कह दीजिये " को "पाँच लिंकों का आनंद" में स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद पम्मी सिंह 'तृप्ति' जी !🙏 😊
Deleteजो होंठों तक गर कोई बात आई,तो कह दीजिये,
ReplyDeleteजो दिल कोई अपना सा लगे,उसमें रह लीजये ।
वाह , बहुत खूब
सुंदर अभिव्यक्ति ।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका संगीता स्वरुप जी!🙏 😊
Deleteबहुत खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका Sweta sinha जी !🙏 😊
Deleteनज़र उठ जाती है,और ठहर जाती है किसी पर,
ReplyDeleteके कुछ और नहीं है,ये संकेत है,कुछ कहता सा,
इन दौड़ते-हाँफते हुए,जीवन के सवालों के लिए,
स्वछंदता को किसी बंधन में,बंध जाने दीजिए।
वाह ! जय श्री जी , बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति | सच में मन में आई बात रोकने में बहुत कुछ थमजाता है जीवन में |सस्नेह शुभकामनाएं|
आपकी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद रेणु जी !🙏 😊
DeleteThanks for sharing ! best Packers and movers bangalore online
ReplyDelete🙏 😊
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