Monday, September 7, 2020

ये बातें

बातों की क्या कहिये,बातों का है अनंत-अथाह संसार,
जन्म से मृत्यु तक शब्दों से ही,बंधा है जीने का आधार।

ये बातें तोतली ज़ुबान-मा,पा,डा से,शुरू जो होती हैं तो,
बुढ़ापे की बेचैन,अनमनी बुदबुदाहट पर ही,ठहरती हैं। 

हर किसी के जीवन के,हर पहलू की,पहचान हैं ये बातें,
प्रेममयी,कभी तीखी और कभी चुगलखोर,भी हैं ये बातें।

ये स्कूल में,कालेज में,दफ्तरों में,शिकायत रूप बसती हैं,
यहाँ बस मेहनत और ज़िम्मेदारी की,पहचान हैं ये बातें।

ऑटो में,बस,ट्रेन,पार्कों और,किसी भी टिकट विंडो पर,
औपचारिक सी,अनजान सी और मेहमान सी हैं ये बातें।

अस्पताल में,कचहरी,थाने या के दैवीय प्रकोप के आगे,
बेबस सी,सहमी हुई,आंसू संग,सिसकती हुई हैं ये बातें।

जीत की ख़ुशी भरी ठिठोली हो,या महफ़िलें सजीली हों,
तो उत्साह,उमंग में बहकती सी,खिलखिलाती हैं ये बातें।

पार्कों के झुरमुटों में,एकांत या दरवाजों और पर्दों के पीछे,
फुसफुसाती,लजाती,प्रेम के आवेग की परवान हैं ये बातें।

बातों के बादलों से ढंका,इंसान का ये जीवन आसमान है,
जोड़ती हैं कभी रिश्ते,सुलझाती-उलझाती भी हैं ये बातें।

उस परवरदिगार से जब भी,किसी को संपर्क साधना हो,
गीता,कुरआन,बाइबिल या गुरुग्रंथ में,समाधान हैं ये बातें।

                                                                       - जयश्री वर्मा