हवा में खुशबुएँ हैं,
बसंत की आहट है,
फूलों पर रंग बिखरे,
भवरों की चाहत है,
तितलियाँ संवर रहीं,
अंग रंग भर रहीं,
फूलों में छुपतीं-निकलतीं,
अठखेलियाँ कर रहीं,
खिलखिलाहट बगियों की,
चहचहाहट चिड़ियों की,
अजीब सी सरसराहट है ,
फूलों और कलियों की,
ऐसे में सब जोड़ों के,
खिले-खिले चेहरे हैं,
मन में उमंग लहर,
नयन भाव गहरे हैं,
बिन बोले ये कहते हैं,
बिन कहे सुनते हैं,
उठते हैं , झुकते हैं,
अफसाने गढ़ते है,
जन्मों के,सदियों के,
अटूट वादे ये करते हैं,
अजीब सा ख़ुमार है,
ये अलबेला प्यार है,
हवा में खुशबुएँ हैं,
बहका सारा संसार है।
दोष नहीं किसी का,
बसंत की बयार में,
ये बसंत का ख़ुमार है।
( जयश्री वर्मा )
जीतनी आपकी रचना लाइक कि हे वो अभी पढ़ी मेने बहोत जयदा अछा आप लिखती ही मेम
ReplyDeleteये आप लोगों द्वारा की गई तारीफें ही हैं जिनके द्वारा मैं कुछ लिख कर आप लोगों को पढ़ा पा रही हूँ ! धन्यवाद Jayshri patel जी !
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