पर्वत विशाल श्रृंखलाओं से अविरल ,
ऊबड़-खाबड़ राहों में मचल-मचल ,
अगणित असहज रास्ते सुलझाती ,
लचीले विचार ले ठहरती बलखाती ,
लचीले विचार ले ठहरती बलखाती ,
कितने ही चीन्हे-अनचीन्हे मोड़ों को ,
कितनी ही घाटियों,कठोर से रोड़ों को ,
अपने नाम बनाती और बहती जाती - नदी।
हर लहर जीत का इतिहास बनाती ,
इस उहापोह के संग वीरानों के रंग ,
क़दमों तले,लिखती जीवन की जंग ,
अपनी ही धुन में,मगन हो ढलकती ,
नव जीवन,नव उत्साह सी छलकती ,
कल-कल मधुर संगीत सुनाती जाती - नदी।
नव जीवन रचती सभ्यताएं है गढ़ती ,
ये भूत भविष्य वर्तमान के संग बढ़ती ,
जल,थल,हर जीव-जगत स्पंदन देती ,
मानव-मुक्त आत्माओं को तर्पण देती ,
कुछ उलझा नहीं इसका जीवन है सादा ,
किया था सागर से मिलने का जो वादा ,
उसे निभाने को ही निरंतर बहती जाती - नदी।
क़दमों तले,लिखती जीवन की जंग ,
अपनी ही धुन में,मगन हो ढलकती ,
नव जीवन,नव उत्साह सी छलकती ,
कल-कल मधुर संगीत सुनाती जाती - नदी।
नव जीवन रचती सभ्यताएं है गढ़ती ,
ये भूत भविष्य वर्तमान के संग बढ़ती ,
जल,थल,हर जीव-जगत स्पंदन देती ,
मानव-मुक्त आत्माओं को तर्पण देती ,
कुछ उलझा नहीं इसका जीवन है सादा ,
किया था सागर से मिलने का जो वादा ,
उसे निभाने को ही निरंतर बहती जाती - नदी।
( जयश्री वर्मा )
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