Thursday, September 4, 2014

बहका गई

बादल जो बेख़ौफ़ उमड़े हैं,कैसे घनघोर घुमड़े हैं,
प्रकृति के वाद्य पर देखो,सुरीले गीत कई उमड़े हैं,
हलकी ठंडी-ठंडी बयार,और देखो बूँद-बूँद फुहार,
तन को भिगो गई,और मन में सपने भी संजो गई।
पपीहे की ये पिहु-पिहु,ये पक्षियों की चहक-चहक,
किलोल करते फूलों की,ये मदमाती महक-दहक,
सतरंगी इन्द्रधनुष की,रंगीली,रंगों भरी ये रंगधार,
कोरी ओढ़नी में रंग भर,प्रीत के गीत में डुबो गई।

ये कैसी फुसफुसाहट है,अजब सी सरसराहट है ?
ये कैसी कलियों के संग भंवरों की गुनगुनाहट है ?
फूलों के रंगों संग,फूट पड़ी धरती की बौराहटह,
अजब सी अनुभूति जागी,तन-मन उमंगें पिरो गई।

ऐसे में चुप-चुप रह बेपरवाह से सुर अनंत फूटे हैं,
कई राग-रंग अंग बिखेर दिए,सपनों ने जो लूटे हैं,
मन की सुर-वीणा की मधुर,नशीली सी ये झंकार ,
बौराए मन आँगन का देखो छोर-छोर भिगो गई।

कुछ भी न कहो ऐसे में बस निःशब्द ही रहने दो,
बोलने दो भावों को,ज़ुबान के बोल शांत रहने दो,
हृदय की विरह वेदना,पलकों से छलक जो पड़ी है ,
वर्षों की एकाकी जीवन व्यथा,दो बूंदो से कह गई।

                                                                                       ( जयश्री वर्मा )



19 comments:

  1. अति सुन्दर भाव
    मन की सुर-वीणा की मधुर,नशीली सी ये झंकार ,
    बौराए मन आँगन का देखो छोर-छोर भिगो गई।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका मधु सिंह जी !

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    1. बहुत - बहुत शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी !

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  3. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (05.09.2014) को "शिक्षक दिवस" (चर्चा अंक-1727)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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    1. आभार आपका राजेंद्र कुमार जी !

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    1. शुक्रिया रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

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    1. बहुत - बहुत शुक्रिया !

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  6. सुंदर भाव लय-ताल के साथ

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  7. शुभ प्रभात
    अच्छी रचना

    आभार....
    आप मेरी धरोहर में आई
    और अपनी उपस्थिति भी दर्ज की
    आप मंगलवार को नयी पुरानी हलचल भी आ रहीं है
    अपनी इसी रचना के साथ.....
    सादर...

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    1. धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी अपनी धरोहर में मुझे शामिल करने के लिए !

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  8. आपकी लिखी रचना मंगलवार 09 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  9. सुन्दर भाव के साथ सुन्दर काव्य सौन्दौर्य लिए रचना !
    जन्नत में जल प्रलय !

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    1. बहुत - बहुत शुक्रिया कालीपद "प्रसाद" जी !

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  10. सुन्दर भाव और अर्थ लिए मनभावन प्रेम दिवस गाथा पर .जतलाना बस यही होता है तुम हमारे लिए महत्वपूर्ण हो .ज़रूरी हो साँसों की धौकनी से .

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !

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