बादल जो बेख़ौफ़ उमड़े हैं,कैसे घनघोर घुमड़े हैं,
प्रकृति के वाद्य पर देखो,सुरीले गीत कई उमड़े हैं,
हलकी ठंडी-ठंडी बयार,और देखो बूँद-बूँद फुहार,
तन को भिगो गई,और मन में सपने भी संजो गई।
पपीहे की ये पिहु-पिहु,ये पक्षियों की चहक-चहक,
किलोल करते फूलों की,ये मदमाती महक-दहक,
सतरंगी इन्द्रधनुष की,रंगीली,रंगों भरी ये रंगधार,
कोरी ओढ़नी में रंग भर,प्रीत के गीत में डुबो गई।
ये कैसी फुसफुसाहट है,अजब सी सरसराहट है ?
ये कैसी कलियों के संग भंवरों की गुनगुनाहट है ?
फूलों के रंगों संग,फूट पड़ी धरती की बौराहटह,
अजब सी अनुभूति जागी,तन-मन उमंगें पिरो गई।
ऐसे में चुप-चुप रह बेपरवाह से सुर अनंत फूटे हैं,
कई राग-रंग अंग बिखेर दिए,सपनों ने जो लूटे हैं,
मन की सुर-वीणा की मधुर,नशीली सी ये झंकार ,
बौराए मन आँगन का देखो छोर-छोर भिगो गई।
कुछ भी न कहो ऐसे में बस निःशब्द ही रहने दो,
बोलने दो भावों को,ज़ुबान के बोल शांत रहने दो,
हृदय की विरह वेदना,पलकों से छलक जो पड़ी है ,
वर्षों की एकाकी जीवन व्यथा,दो बूंदो से कह गई।
( जयश्री वर्मा )
प्रकृति के वाद्य पर देखो,सुरीले गीत कई उमड़े हैं,
हलकी ठंडी-ठंडी बयार,और देखो बूँद-बूँद फुहार,
तन को भिगो गई,और मन में सपने भी संजो गई।
पपीहे की ये पिहु-पिहु,ये पक्षियों की चहक-चहक,
किलोल करते फूलों की,ये मदमाती महक-दहक,
सतरंगी इन्द्रधनुष की,रंगीली,रंगों भरी ये रंगधार,
कोरी ओढ़नी में रंग भर,प्रीत के गीत में डुबो गई।
ये कैसी फुसफुसाहट है,अजब सी सरसराहट है ?
ये कैसी कलियों के संग भंवरों की गुनगुनाहट है ?
फूलों के रंगों संग,फूट पड़ी धरती की बौराहटह,
अजब सी अनुभूति जागी,तन-मन उमंगें पिरो गई।
ऐसे में चुप-चुप रह बेपरवाह से सुर अनंत फूटे हैं,
कई राग-रंग अंग बिखेर दिए,सपनों ने जो लूटे हैं,
मन की सुर-वीणा की मधुर,नशीली सी ये झंकार ,
बौराए मन आँगन का देखो छोर-छोर भिगो गई।
कुछ भी न कहो ऐसे में बस निःशब्द ही रहने दो,
बोलने दो भावों को,ज़ुबान के बोल शांत रहने दो,
हृदय की विरह वेदना,पलकों से छलक जो पड़ी है ,
वर्षों की एकाकी जीवन व्यथा,दो बूंदो से कह गई।
( जयश्री वर्मा )
अति सुन्दर भाव
ReplyDeleteमन की सुर-वीणा की मधुर,नशीली सी ये झंकार ,
बौराए मन आँगन का देखो छोर-छोर भिगो गई।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका मधु सिंह जी !
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत - बहुत शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी !
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (05.09.2014) को "शिक्षक दिवस" (चर्चा अंक-1727)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteआभार आपका राजेंद्र कुमार जी !
Deleteसुन्दर शब्द चयन।
ReplyDeleteउत्तम रचना।
शुक्रिया रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत - बहुत शुक्रिया !
Deleteसुंदर भाव लय-ताल के साथ
ReplyDeleteधन्यवाद आपका !
Deleteशुभ प्रभात
ReplyDeleteअच्छी रचना
आभार....
आप मेरी धरोहर में आई
और अपनी उपस्थिति भी दर्ज की
आप मंगलवार को नयी पुरानी हलचल भी आ रहीं है
अपनी इसी रचना के साथ.....
सादर...
धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी अपनी धरोहर में मुझे शामिल करने के लिए !
Deleteआपकी लिखी रचना मंगलवार 09 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुन्दर भाव के साथ सुन्दर काव्य सौन्दौर्य लिए रचना !
ReplyDeleteजन्नत में जल प्रलय !
बहुत - बहुत शुक्रिया कालीपद "प्रसाद" जी !
Deleteसुन्दर भाव और अर्थ लिए मनभावन प्रेम दिवस गाथा पर .जतलाना बस यही होता है तुम हमारे लिए महत्वपूर्ण हो .ज़रूरी हो साँसों की धौकनी से .
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !
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