Thursday, September 25, 2014

आप कहें तो

मित्रों मेरी यह रचना दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन द्वारा प्रकाशित गृहशोभा में प्रकाशित हुई है,आप भी इसे पढ़ें।


आप कहें तो आपको इस दिल की गहराइयों में बसाऊं,
आपकी कल्पनाओं को थाम के कई अफ़साने सजाऊं। 



आप कहें तो आपको सोते-जागते से ख़्वाबों के शहर में ,
गुनगुनाते,खोए-खोए,सुन्दर स्वप्न सजे,नित गाँव घुमाऊं। 

फूलों और तितलियों के रंगों में डूबे,गीतों से सजे सुरों में ,
बेबाक सुलझे-अनसुलझे सवालों की उलझनें सुलझाऊँ।  

पूस सी सर्द सिहरनभरी और जेठ सी तपती ख्वाबगाह में ,
आप का साथ पाके मैं इक महफूज़ अपना जहान बसाऊं। 

जग से चुरा लूँ आपको,टकरा जाऊं जमाने की हर शै से ,
अगर जो मैं आपका हमदम,हमसफ़र,हमराज़ कहलाऊं। 

आपको अपना बनाने के दरम्यान जमाने के हर सवाल पर , 
आपको आंच न आने दूँ,हर निगाह का जवाब मैं बन जाऊँ।  

आपके यूँ मुस्कुरा के निकल जाने की बेख़याल अदा को , 
अपने प्रेमपगे भावों संग गूंथ,कोई प्यारा,इक नाम दे जाऊं। 

आप कहें मनमीत तो मैं जीवनभर बस आपका ही होकर , 
खुशियों और उमंगों को समेटने में सारा ये जहान भुलाऊं ।

                                                                       ( जयश्री वर्मा )  





4 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...

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    1. बहुत - बहुत धन्यवाद कैलाश शर्मा जी !

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  2. आपके यूँ मुस्कुरा के निकल जाने की बेख़याल अदा को ,
    अपने प्रेमपगे भावों संग गूंथ,कोई प्यारा,इक नाम दे जाऊं।

    वाह ... बहुत खूब ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...आभार

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    1. सादर धन्यवाद इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका संजय भास्कर जी !

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