Thursday, September 11, 2014

जानम मैं हूँ न !


अपना बनाने की कला,जो तुमने है सीखी,
एम.बी.ए. की डिग्री भी,फेल मैंने है देखी,
आँखों के फंदे में ऐसा,तुमने मुझे फंसाया,
हाय ! ख़ुदा भी मेरा,न मुझे सम्हाल पाया,
सारे अस्त्र-शस्त्र प्रेम के,मारे हैं तुमने ऐसे,
ताउम्र का बांड निभाने को जानम मैं हूँ न !



मैं,मुन्नी,चिंटू सब हैं जैसे तुम्हारे सबॉर्डिनेट,
आर्डर देने में प्रिय तुमने,किया कभी न वेट,
चलाओ धौंस,पड़ोसियों से भी उलझ जाओ,
हक़ है तुम्हें मुकाबले में,जीत तुम ही पाओ,
ढाल हूँ मैं आखिर तुम्हारी,सुरक्षा ही करूंगा,
सारे बिगड़े मसले सुलझाने को जानम मैं हूँ न !


किटी पार्टी में जाओ तो,बहार बनके छाओ,
टिकुली,झुमका,सेंट,सारे श्रृंगार भरके जाओ,
हाउज़ी खेलने में प्रिय पैसे लगाना बेझिझक,
कहलाना न पिछड़ी,एक-दो घूँट लेना गटक,
हंसना है सेहतमंद,सो कहकहे खूब लगाना,
तुम्हारे ये सारे खर्च उठाने को जानम मैं हूँ न !



बटुए के पैसे ज़ेवर और साड़ियों पे लुटाओ,
पहन-पहन के सब,जबरन मुझे दिखाओ,
तारीफ़ न मिले जो,तुम्हारे मन के मुताबिक़,
रूठ जाना हक़ से,संग शब्दबाण अधिक,
मानना तभी,जब फरमाइश हो कोई पूरी,
आखिर तो नाज़ उठाने को जानम मैं हूँ न !


फिर भी हो जानम तुम,मेरे इस घर की रानी,
मेरे इस जीवन-जनम की,हो अमिट कहानी,
तुम रूठो,रिझाओ या मुझे बातों से बहकाओ,
खुशियों में सदा झूलो,हरदम खिलखिलाओ,
मैंने जीवन सौंपा तुम्हें,पूरे इस जन्म के लिए,
हर तरह की शै से जूझने को जानम मैं हूँ न !

                                                      ( जयश्री वर्मा )

23 comments:

  1. "हर तरह की शै से जूझने को जानम मैं हूँ न !" सुंदर अभिव्यक्ति जयश्री जी!
    धरती की गोद

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका संजय कुमार गर्ग जी !

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  2. फिर भी हो जानम तुम,मेरे इस घर की रानी,
    मेरे इस जीवन-जनम की,हो अमिट कहानी, ...
    वाह मज़ा आ गया इस रचना का ... हलक फुल्के अंदाज़ में सच बात आसानी से कह दी ...

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    1. बहुत - बहुत शुक्रिया दिगम्बर नस्वा जी !

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  3. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (12.09.2014) को "छोटी छोटी बड़ी बातें" (चर्चा अंक-1734)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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    1. आभार आपका राजेंद्र कुमार जी !

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  4. बहुत खूबसूरत प्यार भरी शिकायत ...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद नीरज जी !

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  5. क़ैद-ए-ताल्लुक़ और ख़ुदसर मोहतरमा
    हुक्म सर आँखों पर ना हो तो क्या हो.

    ये कशिश जो आपकी कलम है … बस हुनर नायाब समझो :)

    रंगरूट
    ब्लॉग अच्छा लगे तो ज्वाइन भी करें
    आभार।

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    1. सादर बहुत-बहुत धन्यवाद आपका Rohitas ghorela जी !

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    2. वेलकम जयश्री जी
      आप एक बार पधारिये तो सही हमारे ब्लॉग पर निराश नहीं करेगें आपको

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    3. अवश्य ! धन्यवाद आपका !

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    1. धन्यवाद आपका धीरेन्द्र अस्थाना जी !

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  7. जानम,मैं हूं ना.
    सब कुछ कह दिया,ना कहने में.
    कुछ तो है?

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    1. बहुत - बहुत शुक्रिया मन के-मनके जी !

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  8. आभार आपका यशोदा अग्रवाल जी !

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  9. जानम को अच्छे से समझा दिया...लाजवाब...

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    1. आभार आपका वानभट्ट जी !

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  10. रचना पढ़कर हसीं भी आई और भुक्तभोगी के लिए करुणा भी उपजी :) बेचारा ! :D अच्छी रचना है :)

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    1. ख़ुशी हुई कि आपको मेरी रचना पसंद आई ! धन्यवाद ऋचा जी !

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  11. ढाल हूँ मैं आखिर तुम्हारी,सुरक्षा ही करूंगा,
    सारे बिगड़े मसले सुलझाने को जानम मैं हूँ न !

    ....बहुत गहन भाव और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति...रचना अंतस को छू जाती है...
    Recent Post ..उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते

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    1. बहुत - बहुत शुक्रिया आपका संजय भास्कर जी !

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