सूरज की लाली,पृथ्वी की हरियाली,
सागर का धैर्य,नदियों की लहरें मतवाली,
पंछियों का कलरव,भँवरों के गुनगुन का हौसला,
पुष्पों की रंगत और मनभावन ख़ुश्बू,सदा बनी रहे,बनी रहे।
बच्चों का बचपन,माँ का ममत्व,दुलराना,
पिता की छत्रछाया,गुरु का जीवन संवारना,
शिष्यों में शिष्टाचार,दोस्तों का हो विश्वास,प्यार,
दादी,नानी की कहानियाँ हज़ार,सदा बनी रहें,बनी रहें।
पुरुषों में स्वाभिमान,ललनाओं का सम्मान,
बुज़ुर्गों का आशीर्वाद,सन्यासियों में हो साधुवाद,
आपसी भाईचारा,समाज सदा विकसित हो हमारा,
संस्कृति और सभ्यता की पहचान,सदा बनी रहे,बनी रहे।
बहन का रक्षाबन्ध,भाई की सौगंध,
त्योहारों के रंग,संस्कृतियों के नवीन ढंग,
गीतों की सुरलहरी और सीमा पर सजग प्रहरी,
कर्मठता के हौसलों की नित प्यास,सदा बनी रहे,बनी रहे।
धर्मों की अनेकता,ईश्वर नाम की एकता,
भाषाओं में चाहे भिन्नता,भावों की समानता,
प्रेम,दया,सौहार्द,अपनत्व,सम्मान और स्वाभिमान,
सहिष्णुता,सदभावना की मिठास,सदा बनी रहे,बनी रहे।
सागर का धैर्य,नदियों की लहरें मतवाली,
पंछियों का कलरव,भँवरों के गुनगुन का हौसला,
पुष्पों की रंगत और मनभावन ख़ुश्बू,सदा बनी रहे,बनी रहे।
बच्चों का बचपन,माँ का ममत्व,दुलराना,
पिता की छत्रछाया,गुरु का जीवन संवारना,
शिष्यों में शिष्टाचार,दोस्तों का हो विश्वास,प्यार,
दादी,नानी की कहानियाँ हज़ार,सदा बनी रहें,बनी रहें।
पुरुषों में स्वाभिमान,ललनाओं का सम्मान,
बुज़ुर्गों का आशीर्वाद,सन्यासियों में हो साधुवाद,
आपसी भाईचारा,समाज सदा विकसित हो हमारा,
संस्कृति और सभ्यता की पहचान,सदा बनी रहे,बनी रहे।
बहन का रक्षाबन्ध,भाई की सौगंध,
त्योहारों के रंग,संस्कृतियों के नवीन ढंग,
गीतों की सुरलहरी और सीमा पर सजग प्रहरी,
कर्मठता के हौसलों की नित प्यास,सदा बनी रहे,बनी रहे।
धर्मों की अनेकता,ईश्वर नाम की एकता,
भाषाओं में चाहे भिन्नता,भावों की समानता,
प्रेम,दया,सौहार्द,अपनत्व,सम्मान और स्वाभिमान,
सहिष्णुता,सदभावना की मिठास,सदा बनी रहे,बनी रहे।
राष्ट्र गान,राष्ट्र गीत,राष्ट्रीय चिन्ह,राष्ट्रीय खेल,
लोक गीत,लोक कलाएं,वीर गाथाओं की अमर बेल,
ग्रामीण जीवन,जल,जंगल,जमीन,विज्ञान का अद्भुत मेल,
जगत में भारत के इस तिरंगे की पहचान,सदा बनी रहे,बनी रहे।
- जयश्री वर्मा
कल 30/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
आभार आपका ! यशवंत यश जी !
Deleteसचमुच ऐसा बना रहे पूरे जगत में तो स्वर्ग अर्थहीन हो जाए. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसही कहा आपने निहार रंजन जी ! धन्यवाद !
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद सु..मन कपूर जी !
Deleteबहुत - बहुत शुक्रिया ओंकार जी !
ReplyDeleteआमीन ! ईश्वर करे ऐसा ही हो ॥
ReplyDeleteमेरे शब्दों में मेरा साथ देने के लिए धन्यवाद नीरज जी !
Deletekhubsurat rachna ...kash aisa ho sake..
ReplyDeleteमेरी रचना में की गई कामना में मेरे साथ होने के लिए आपका धन्यवाद लेखिका जी !
Deleteबहुत सुन्दर और पवित्र आकांक्षा...आमीन
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद आपका कैलाश शर्मा जी !
Deleteहमारी भी .ही कामना है।
ReplyDelete--
सार्थक रचना।
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ReplyDeleteशुक्रिया आपका संजय भास्कर जी !
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