टमाटर का भाव 140 रुपए किलो होने पर !
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
दुकानों पर बैठ के इतराते हो,
क्यूँ दाम अपने बढ़ाते जाते हो,
हम भी तो तरस रहे तुम बिन,
बटुए में पैसे रखे थे गिन-गिन,
पहुँच से फिर भी बाहर दिखते,
बहुत ही ऊँचे बोल में बिकते।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
तुम बिन है सब्जी फीकी लागे,
तुम बिन है दाल न सुन्दर साजे,
सब्जियों पे तुम राज सा करते,
तुममें विटामिन भरपूर हैं बसते,
मेरी कढ़ाई की सब्जियों में भी,
लाली बन कर छा जाओ जी।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
तुम बिन सलाद न पूरी खुद देखो,
ये बेरौनक बस्ती सी अधूरी देखो,
काश मेरी प्लेट में भी आ विराजो,
औ सूनी मांग में सिन्दूर सा साजो,
रईसों से ही न केवल नाता जोड़ो,
मेरी तरफ भी रुख अपना मोड़ो।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
जिस संग हो तुम वो मुस्काता है,
हो जिस संग नहीं वो झुंझलाता है,
काट-छांट के देखो बजट बनाया,
तुमको पाले में लाने को हरसंभव,
न जाने क्या-क्या है जुगत लड़ाया,
पर तुम्हरा हिसाब समझ न पाया।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
तुम्हारे आजकल ऐसे भाव बढ़े हैं,
कि दिन दूने रात चौगुने से चढ़े हैं,
हम भी तुम्हें बेहद पसंद करते हैं,
तुम्हें दूर से देखकर आहें भरते हैं,
किलो दो किलो की बात को छोड़ो,
पाव भर रूप में ही आ जाओ जी।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
( जयश्री वर्मा )
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
दुकानों पर बैठ के इतराते हो,
क्यूँ दाम अपने बढ़ाते जाते हो,
हम भी तो तरस रहे तुम बिन,
बटुए में पैसे रखे थे गिन-गिन,
पहुँच से फिर भी बाहर दिखते,
बहुत ही ऊँचे बोल में बिकते।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
तुम बिन है सब्जी फीकी लागे,
तुम बिन है दाल न सुन्दर साजे,
सब्जियों पे तुम राज सा करते,
तुममें विटामिन भरपूर हैं बसते,
मेरी कढ़ाई की सब्जियों में भी,
लाली बन कर छा जाओ जी।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
तुम बिन सलाद न पूरी खुद देखो,
ये बेरौनक बस्ती सी अधूरी देखो,
काश मेरी प्लेट में भी आ विराजो,
औ सूनी मांग में सिन्दूर सा साजो,
रईसों से ही न केवल नाता जोड़ो,
मेरी तरफ भी रुख अपना मोड़ो।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
जिस संग हो तुम वो मुस्काता है,
हो जिस संग नहीं वो झुंझलाता है,
काट-छांट के देखो बजट बनाया,
तुमको पाले में लाने को हरसंभव,
न जाने क्या-क्या है जुगत लड़ाया,
पर तुम्हरा हिसाब समझ न पाया।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
तुम्हारे आजकल ऐसे भाव बढ़े हैं,
कि दिन दूने रात चौगुने से चढ़े हैं,
हम भी तुम्हें बेहद पसंद करते हैं,
तुम्हें दूर से देखकर आहें भरते हैं,
किलो दो किलो की बात को छोड़ो,
पाव भर रूप में ही आ जाओ जी।
हे सुस्वादु टमाटर ! आओ जी !
मेरी झोली में भी आ जाओ जी !
( जयश्री वर्मा )
वाकई ! टमाटर बिन थाली के सारे व्यंजन बेस्वाद हो जाते हैं ! अभिनव व्यथा कथा !
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद आपका साधना वैद जी ! टमाटर की महंगाई की व्यथा से आज कल हम सभी दो - चार हो रहे है !
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद आपका अनुषा मिश्रा जी !
Deleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
आभार आपका यशवंत यश जी !
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