मेरी दोनों हथेलियाँ अभ्यस्त हैं काम करने की,
ये सुबह से ही काम में जुट जाती हैं,
ये बनाने लगती हैं चाय तुम्हारे लिए,
फैला बिस्तर सहेजती हैं,सलीके के लिए,
फिर सब्ज़ी कोई भी हो,काट,छौंक देती हैं,
रोटी,पराँठा,पूरी सब बेल लेती हैं,
मुन्नू और तुम्हारा टिफ़िन जो देना है,
फिर झाड़ू,पोंछा,बर्तन,कपड़े धुलना है,
नहाना है और फिर बाज़ार जाना है,
आख़िर शाम को भी तो कुछ खाना है,
बहुत मन करता है इनका कि ये फ़ुरसत से-
आपस में जुड़,ठुड्डी के नीचे लग आराम से बैठें,
पर अब मुन्नू के होमवर्क का वक़्त है,
आँगन में अम्मा का भी तो तख़्त है,
उनकी देखभाल को भी तो दोनों हथेलियाँ बंधी हैं,
चूक नहीं होती इनसे,इस कदर ये सधी हैं,
शाम तुम्हारे आने पर दरवाज़े की कुंडी खोलेंगी,
और आगे बढ़कर तुमसे हेलमेट और बैग ले लेंगी,
फिर रसोई में जादूगरी दिखाएँगी,
और सबकी इच्छा का बनाएँगी,पकाएँगी,
रात सारे काम निपटा,तुम्हारे चेहरे को हाथों में ले,
गृहस्थ जीवन का तक़ाज़ा है,तुम्हें प्यार भी तो करेंगी,
स्वाभाविक है काम की थकान से ये थकेंगी,
और जब कभी तुम,विरक्त भाव से देखोगे,
और जब कभी,मुझपर ध्यान भी नहीं दोगे,
क्यों कि,मुझे काम करते देखना तुम्हारी आदत है,
आख़िर हर औरत के लिए,मुक़र्रर काम ही उसकी इबादत है,
नेह और सम्मान की अभिलाषा में,
अपने होने के अर्थ की पिपासा में,
मेरी पलकों पे भर आए आंसुओं को भी तो,
ये दोनों हथेलियाँ ही पोंछेंगीं,
और अगले दिन सुबह फिर कामों से जूझेंगीं।
- जयश्री वर्मा
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-8-22} को "वीरानियों में सिमटी धरती"(चर्चा अंक 4537) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी !🙏 😊
ReplyDeleteजयश्री वर्मा जी अपने लिए वक्त चुरा लिखना भी है
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण
आपका सादर धन्यवाद विभा रानी जी !🙏 😊
Delete"अब मुन्नू के होमवर्क का वक़्त है,
ReplyDeleteआँगन में अम्मा का भी तो तख़्त है," - बहुत कुछ समेट लिया आपने। फिर भी बहुत कुछ बच गया। आपको इस यथार्थ पूर्ण सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाईयाँ। शुभकामनाएँ।
सादर नमन आदरणीय!🙏 😊
Deleteअत्यंत सुंदर भाव और प्रवाहमयी प्रस्तुति लाजवाब .नि:शब्द कर दिया
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका संजय भास्कर जी !🙏😊
Deleteबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteशुक्रिया आपका आदरणीया !🙏 😊
Deleteबेहद पसंद आई यह रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद रंजू भाटिया जी !🙏 😊
Deleteहर स्त्री यूँ ही जादूगिरी करती है । अफसोस कि कोई प्रभावित नहीं होता इस जादू से ।
ReplyDelete🙏 😊
Deleteआदरणीया आपने हथेलियों के जरिये एक स्त्री कैसे सबका जीवन सॅवारती है आपने बड़े ही सरलता से अपनी रचना के जरिए प्रस्तुत किया....बहुत बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद शकुंतला जी !🙏 😊
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