यहीं रोक दो गलतफहमियाँ,इन्हें आगे न बढ़ाओ,
शिकवों की ईंट चुन-चुन के,ऐसे दीवार न बनाओ,
न बीनो,बीते हुए वक्त के,बातों के बिखरे ठीकरे,
के हँसते हुए लम्हों में,आँखों के आंसू न गिनाओ।
वापस न होगा लौटा हुआ लम्हा,जो गुज़र चुका,
जीत उसी की हुई,जो प्रेम के आगे है जा झुका,
कह दो कि जो हुआ,उसे जाने भी दो न अब यार,
बहुत हंसा है ज़माना,कहता था-और करो प्यार।
कुछ तुम भुला देना ख़ताएँ,कुछ हम भी भुलाएंगे ,
रिश्ते की टूटती साँसों में,नए प्राणों को बसाएंगे ,
जब लड़ने में न थी झिझक,तो मिलने में कैसी है?
ये किसकी है परवाह तुम्हें,और किससे शर्म है?
बेगाने होके इक दूजे से,हम आधे-अधूरे से रहे है,
तुम भी तो हारे हुए से,और हम भी तो,मरते रहे हैं,
आज जब हो सामने,तो अनजाना सा न जताओ,
वक्त से कैसे हार जाएं हम,अब तुम ही बताओ?
कभी अच्छा बिताया था वक्त,उसी वक्त के सहारे,
कुछ तो रहे थे ईमानदार लम्हे,हमारे और तुम्हारे,
उन्हीं जज़्बातों का वास्ता तुम्हें,के हम-तुम न मुड़ेंगे,
हार जाएंगे ज़माने से,गर उसी मोड़ पर खड़े रहेंगे।
- जयश्री वर्मा
बढ़िया भाव
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद विभा रानी जी !🙏 😊
Deleteप्यार किया तो डरना क्यों
ReplyDeleteआभार
सादर
उचित है यशोदा अग्रवाल जी !🙏 😊
Deleteकुछ तुम भुला देना ख़ताएँ,कुछ हम भी भुलाएंगे ,
ReplyDeleteरिश्ते की टूटती साँसों में,नए प्राणों को बसाएंगे ,
जब लड़ने में न थी झिझक,तो मिलने में कैसी है?
ये किसकी है परवाह तुम्हें,और किससे शर्म है?
बहुत सटीक एवं लाजवाब
वाह!!!
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा देवरानी जी !🙏 😊
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