तो कौन सा है घर मेरा,क्या ये दर मेरा नहीं है?
जन्म दिया है तुमने,और पिता ने दिया है अंश,
पाला-पोसा मुझे भी,क्यों भाई सी नहीं हूँ वंश?
पराई है,कहा परिजनों ने,पर किसी ने न रोका?
पराया कह पाला मुझे,और किसी ने न टोका?
जहाँ रह रही हूँ माँ मैं,क्या ये घर मेरा नहीं है?
तो कौन सा है घर मेरा,क्या ये दर मेरा नहीं है?
ससुराल में छोड़ा मुझे,कई अनजाने सवालों में,
खुद को मिटाना है मुझे,कुछ ऐसे ही ख्यालों में,
मैं हूँ यहां पे,निपट अकेली,मेरी कोई न ढाल है,
साजिश व्यक्तित्व मिटाने की,कैसी ये चाल है?
जहाँ रह रही हूँ माँ मैं,क्या ये घर मेरा नहीं है?
तो कौन सा है घर मेरा,क्या ये दर मेरा नहीं है ?
अंग अपना काटा मैंने,पर वंश उनका बढ़ाया है ,
सुपुत्र मेरा नहीं वो,बस पिता का ही कहलाया है,
पहचानती हैं दीवारें,रसोई के बर्तन भी जानते हैं,
उम्र बिता दी जिस घर में,क्यों अपना न मानते है?
जहाँ रह रही हूँ माँ मैं,क्या ये घर मेरा नहीं है?
तो कौन सा है घर मेरा,क्या ये दर मेरा नहीं है?
साठ पे वृद्धा हुई हूँ जब मैं,ये मेरे बेटे का घर है,
नया वक्त,नयी सोच,और कुछ नई सी सहर है,
मेरी ज़िन्दगी मेरे ख़्वाबों का,मतलब कुछ नहीं?
क्या मान लूँ अब ये मैं कि,मेरा वज़ूद कुछ नहीं?
जहाँ रह रही हूँ माँ मैं,क्या ये घर मेरा नहीं है?
तो कौन सा है घर मेरा,क्या ये दर मेरा नहीं है?
माँ हँसी,माँ मुस्कुराई,सर पे मेरे हाथ नेहभरा फेरा,
बोली-नारी ही घर है,ये तो सामाजिकता का चेहरा,
धरणी है नारी,केंद्र सभी रिश्तों,हर घर,कुटुम्ब का,
अघोषित हक़ है उसका,उस बिन हर घर है अधूरा।
- जयश्री वर्मा
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (7 -8-22} को "भारत"( चर्चा अंक 4514) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सादर धन्यवाद आपका कामिनी सिन्हा जी !🙏 😊
Deleteअद्भुत और भावपूर्ण सजृन। आपको बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद !🙏 😊
Deleteनारी के मन में उठने वाले सवालों को उठाया है लेकिन उत्तर भी मिला तो मन को बहलाने वाला ।
ReplyDeleteविचारणीय रचना ।
हार्दिक अभिवादन आपका संगीता स्वरूप जी !🙏😊
Deleteबेटी के सवाल बहुत वाजिब हैं और माँ का जवाब क़तई ग़ैर-वाजिब है.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका गोपेश मोहन जी !🙏आपकी और संगीता स्वरूप जी की बात उचित है,कुछ बदलाव किया है आख़िरी पंक्तियों में शायद अब सार्थक लगे 😊
Deleteजहाँ रह रही हूँ माँ मैं,क्या ये घर मेरा नहीं है?
ReplyDeleteतो कौन सा है घर मेरा,क्या ये दर मेरा नहीं है?
अत्यंत मार्मिक और अनूत्तरित प्रश्नो से युक्त सुंदर रचना आदरणीय ।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दीपक कुमार जी !🙏 😊
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 08 अगस्त 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हार्दिक आभार आपका संगीता स्वरूप जी !🙏😊
Deleteजहाँ रह रही हूँ माँ मैं,क्या ये घर मेरा नहीं है?
ReplyDeleteतो कौन सा है घर मेरा,क्या ये दर मेरा नहीं है?
बहुत भावपूर्ण रचना 👌
धन्यवाद उषा किरण जी !🙏 😊
Deleteविचारणीय अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सतीश सक्सेना जी !🙏 😊
Deleteसुंदर सृजन।
ReplyDeleteसदियों से इनसे मिलते जुलते प्रश्न नारियों के मन उठते रहें हैं माएं समझाती रही हैं पर अब कुछ सालों में काफी बदलाव आएं हैं।
नेम प्लेट पर दोनों के नाम लिखे जा रहें हैं वै भी पहले नारी का, घर में भी प्रायः नारियों की प्रभुत्व देखने को मिलता है।
खैर!
बहुत सुंदर सृजन।
सत्य कहा आपने,और ये बदलाव ही विकास का द्योतक है,पर अभी ये एक तरह से शुरुआत है ।🙏 😊
Deleteबेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर आभार आपका भारती दास जी !🙏😊
Deleteधरणी है नारी,केंद्र है रिश्तों,हर घर,कुटुम्ब का,
ReplyDeleteअघोषित हक़ है उसका,उस बिन हर घर अधूरा।
वाह…👌👌
धन्यवाद उषा किरण जी !🙏 😊
Deleteसदियों से संघर्षशील नारी इन्हीं प्रश्नों से उलझती जीवन जी कर चली जाती है।
ReplyDeleteसत्य है,रेणु जी !🙏 😊
Delete👌👌👌आह भी और वाह भी !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद जी !🙏 😊
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सृजन दिल से लिखी बेचैन करती बहुत पंक्तियां
ReplyDeleteप्रशंसा के लिए नमन आदरणीय!🙏 😊
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