के दिनॉंक - 4/5/14 , पृष्ठ संख्या -15 पर प्रकाशित हुई है। आप भी इसे पढ़ें।
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क्यों कोख से बुढ़ापे तक तुम यूँ हमारा वजूद मिटाते हो,
कभी हमले,कभी तेज़ाब,कभी शब्दों के नश्तर चुभाते हो।
हम ही हैं जो जन्म दे तुम्हें ममत्व से पोषित करते हैं,
धूल,धूप,आंधी,पानी और बुरी नज़रों से दूर रखते हैं।
हम अपने आँचल की छाँव में तुम्हें महफूज़ बनाते हैं,
तुम्हारा वजूद प्रेरित कर तुममें हौसलों को जगाते हैं।
हम ही हैं जो अहम् को तुम्हारे अंदर जीवित रखते हैं,
रिश्ते,सलीका,दुनिया भर की खुशियाँ तुममें भरते हैं।
माँ,बीबी,बहन,बेटी,बनकर घर को घर हम ही बनाते हैं,
हम हैं जो तुम्हें भाई,पिता,सनम के मायने समझाते हैं।
सोचो गर हम न होंगे तो तुम किससे दिल लगाओगे,
किस संग घर बसाओगे,किस संग सपने सजाओगे।
हम न होंगे गर दुनिया में तो,तुम किसके गीत गाओगे,
किसपे गीत,गज़ल लिखोगे,किसके किस्से बनाओगे।
अरे ! बिन हमारे अपने जीवन का,वज़ूद तो बता के देखो,
हर गली,मोहल्ले,बाजारों से जरा रंगों को तो हटा के देखो।
अपनी ही ज़िन्दगी की भयावह वीरानियों से कांप जाओगे,
अरे हमें बचाओ,हमें सहेजो,तभी जीवन को जान पाओगे।
( जयश्री वर्मा )
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