जब उस दिन गहरे नयनों की
मैं कुछ भाषा पहचान सकी
बस,तबसे इस जीवन दुःख की
मैं कुछ सार्थकता जान सकी ।
बरबस बरस पड़े नयन घन
उसके जाने के बाद आज -
उसकी आती छवि ने हंसकर
बांहें दीं बरबस गले डाल।
मैं बही जा रही मौन विवश
भाव - सरिता में लक्ष्यहीन
रह कर सागर के हृदय बीच
मैं सुख सपनों की प्यासी मीन।
चाहूँ कितना,सब कुछ,कह डालूं
जड़ हुए उर,ओंठ,पलक और तन
खुद समझ न पाऊँ मैं क्या चाहूँ
बस तरस गया मेरा यह मन।
( जयश्री वर्मा )
मैं कुछ भाषा पहचान सकी
बस,तबसे इस जीवन दुःख की
मैं कुछ सार्थकता जान सकी ।
बरबस बरस पड़े नयन घन
उसके जाने के बाद आज -
उसकी आती छवि ने हंसकर
बांहें दीं बरबस गले डाल।
मैं बही जा रही मौन विवश
भाव - सरिता में लक्ष्यहीन
रह कर सागर के हृदय बीच
मैं सुख सपनों की प्यासी मीन।
चाहूँ कितना,सब कुछ,कह डालूं
जड़ हुए उर,ओंठ,पलक और तन
खुद समझ न पाऊँ मैं क्या चाहूँ
बस तरस गया मेरा यह मन।
( जयश्री वर्मा )
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