ये मौसमों का आवाज़ देना,जगाना,बुलाना,हर पल ,
और पलकों संग ख़्वाबों की,लुका-छिपी की हलचल ,
के इन हवाओं का बहना,बिना बंधन हो के बेपरवाह ,
इंतज़ार है तुम्हारा,तुम आओगे या के न आ पाओगे।
मेरे पहलू में बैठो तो ज़रा,बातें कहो-सुनो तो ज़रा ,
मेरे और अपने दिल के,जज़्बातों को,गुनो तो ज़रा ,
कुछ पल अपने ये,मेरे नाम लिख कर के तो देखो ,
फिर नहीं पुकारूंगा,रुकोगे या के न रुक पाओगे।
कुछ अपनी,मौसमों,और इन पंछियों की बात करो ,
के मेरे जज़्बात संग,अपने विश्वास की हामी तो भरो ,
कुछ कदम तो साथ चलो,फिर रहा फैसला तुम्हारा ,
मेरी धड़कनों को सुन पाओगे या के न सुन पाओगे।
ऐसा नहीं है कि,हर कोई ही,गुनहगार हो दुनिया में ,
ये वादा रहा,खुशियाँ ही उगाऊंगा,जीवन बगिया में ,
खरा ही उतरूंगा,हर कदम,अब मर्ज़ी तुम्हारी आगे ,
चाहा तुमने भी है,कह पाओगे या के न कह पाओगे।
यूँ तो तुम्हारे ठिठके कदम भी,अब आगे बढ़ते नहीं हैं,
तुम्हारे ख्वाब भी जो थे तुम्हारे,अब वो तुम्हारे नहीं हैं,
तुम्हारी मन वीणा का,हर तार ही पुकार रहा है मुझे,
अब है फैसला तुम्हारा,लौटोगे या के न लौट पाओगे।
के आ भी जाओ इस दुनिया की राहें बड़ी बेरहम हैं ,
जहाँ बिछड़े,उसी मोड़ पे,इंतज़ार में अबतक हम हैं ,
इतनी भी कमजोर नहीं है मेरी मुहब्बत की ये ज़मीन,
खाली न जाएगी दिल की पुकार,तुम आ ही जाओगे।
- जयश्री वर्मा
और पलकों संग ख़्वाबों की,लुका-छिपी की हलचल ,
के इन हवाओं का बहना,बिना बंधन हो के बेपरवाह ,
इंतज़ार है तुम्हारा,तुम आओगे या के न आ पाओगे।
मेरे पहलू में बैठो तो ज़रा,बातें कहो-सुनो तो ज़रा ,
मेरे और अपने दिल के,जज़्बातों को,गुनो तो ज़रा ,
कुछ पल अपने ये,मेरे नाम लिख कर के तो देखो ,
फिर नहीं पुकारूंगा,रुकोगे या के न रुक पाओगे।
कुछ अपनी,मौसमों,और इन पंछियों की बात करो ,
के मेरे जज़्बात संग,अपने विश्वास की हामी तो भरो ,
कुछ कदम तो साथ चलो,फिर रहा फैसला तुम्हारा ,
मेरी धड़कनों को सुन पाओगे या के न सुन पाओगे।
ऐसा नहीं है कि,हर कोई ही,गुनहगार हो दुनिया में ,
ये वादा रहा,खुशियाँ ही उगाऊंगा,जीवन बगिया में ,
खरा ही उतरूंगा,हर कदम,अब मर्ज़ी तुम्हारी आगे ,
चाहा तुमने भी है,कह पाओगे या के न कह पाओगे।
यूँ तो तुम्हारे ठिठके कदम भी,अब आगे बढ़ते नहीं हैं,
तुम्हारे ख्वाब भी जो थे तुम्हारे,अब वो तुम्हारे नहीं हैं,
तुम्हारी मन वीणा का,हर तार ही पुकार रहा है मुझे,
अब है फैसला तुम्हारा,लौटोगे या के न लौट पाओगे।
के आ भी जाओ इस दुनिया की राहें बड़ी बेरहम हैं ,
जहाँ बिछड़े,उसी मोड़ पे,इंतज़ार में अबतक हम हैं ,
इतनी भी कमजोर नहीं है मेरी मुहब्बत की ये ज़मीन,
खाली न जाएगी दिल की पुकार,तुम आ ही जाओगे।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.02.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3617 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर धन्यवाद आपका दिलबागसिंह विर्क जी!
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