Friday, November 8, 2019

बहुत कुछ अनकही

मित्रों !मेरी इस कविता कि कुछ पंक्तियाँ समाचार पत्र " दैनिक जागरण " में छप चुकी हैं , आप लोग भी इसे पढ़ें।


रात बड़ी खामोश थी पर,बहुत कुछ अनकही कह गयी,
उफ़ भी न बोली और , बहुत कुछ असहनीय सह गयी ।

 माँ की आधी लोरी के बीच,सोया हुआ नन्हा सा बच्चा,
प्रिय का किया वादा,थोड़ा सा झूठा और थोड़ा सच्चा।

मंत्रियों की राजनीतिक बातें,और बातों की गहरी घात,
दिन भर की झिकझिक,रात शराब संग हुई बरदाश्त।

बेला की मादक खुशबू,घुंघरूओं की छलिया छन-छन,
हर वर्ग के आदत से लाचार,पहुँच जाते हैं वहां बन-ठन।

मन की गन्दगी के वशीभूत,तन की गन्दगी में लोटते हैं,
घर पर राह तकती पत्नी के,मन में डर के घाव फूटते हैं।

रौशनियों में डूबी,खिलखिलाहटों की दर्द भरी रवानी है,
पलभर खुशी की तलाश की,लुटने-लुटाने की कहानी है।

किसी के हाथ मेहँदी सजी,कोई विवाह के नाम जल गयी,
जीवन संगिनी थी,तो फिर क्यों,दहेज की बलि चढ़ गयी ।

बड़े-बड़े खिलाड़ियों के खेलों की,होती करोड़ों की सेटिंग,
कौन कितना खेलेगा उसके ही,हिसाब से है उसकी रेटिंग।

कभी राज़ को राज़ रखने के बदले,कोई जान ली जाती है,
फिर अगले दिन उजाले में,झूठी तहकीकात की जाती है।

दशहरा,दुर्गापूजा,रमजान,क्रिसमस के,जश्न भी तो होते हैं,
कहीं बहुतों को समेटे गोद में,सुलगते शमशान भी रोते हैं।

कहीं घरों में चुपचाप खौफ़नाक,इरादों संग लुटेरे घुसते हैं,
निरीह,एकाकी बुज़ुर्ग,लाचार उनकी,दरिंदगी में पिसते हैं।

कहीं पे झाड़-फूंक,गंडे-ताबीजों की,तांत्रिक लीलाएं होती हैं,
कहीं धूनी रमाते बाबाओं की,खौफ़नाक रासलीलाएँ होती हैं।

सड़कों पर रातों में दौड़ती,100 नंबर पुलिस गश्त करती है,
मगर वो वारदातियों को कभी भी,रंगे हाथों नहीं पकड़ती है।

रात बड़ी खामोश थी पर,बहुत कुछ कहा,अनकहा कह गयी,
उफ़ भी न बोली ये,और बहुत कुछ,असहनीय सा सह गयी ।

                                                                ( जयश्री वर्मा )



20 comments:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    10/11/2019 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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    1. सादर आभार आपका कुलदीप ठाकुर जी !🙏 😊

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  2. सड़कों पर रातों में दौड़ती,100 नंबर पुलिस गश्त करती है,
    मगर वो वारदातियों को कभी भी,रंगे हाथों नहीं पकड़ती है।
    ---यही तो समझ से परे है कि आखिर गश्त किसके लिए - सुरक्षा या फिर संरक्षण के लिए .....
    रात बड़ी खामोश थी पर,बहुत कुछ कहा,अनकहा कह गयी,
    उफ़ भी न बोली ये,और बहुत कुछ,असहनीय सा सह गयी ।
    सच कोई देखने-सुनने वाला न हो तो किसे कहें सब

    एक कटु सत्य आज की व्यवस्था का कच्चा चिट्ठा

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका कविता रावत जी !🙏😊

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    1. इस हौसलाअफ़्ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका 🙏😊

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  4. आज को सत्यता को बेहद करीब से व्यक्त किया है।
    बहुत खूब।
    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

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    1. सादर आभार आपका रोहिताश जी !🙏 😊

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10 -11-2019) को "आज रामजी लौटे हैं घर" (चर्चा अंक- 3515) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    **********************
    रवीन्द्र सिंह यादव

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    1. सादर नमन रवीन्द्र सिंह यादव जी!🙏 😊

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  6. बहुत सुन्दर

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    1. सादर धन्यवाद आपका ओंकार जी!🙏 😊

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  7. यथार्थ पर सटीक प्रहार करती सार्थक रचना।

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    1. सादर धन्यवाद आपका!🙏 😊

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  8. व्याप्त विसंगतियों पर गहन वैचारिक प्रस्तुति।
    अनुपम।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका!🙏 😊

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  9. सटीक प्रहार करती रचना।

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