कलियाँ कब,क्यों चुपके से,फूल बनके महकें ?
ये भँवरे गुन-गुन सुन ज़रा,क्या कुछ हैं कहते ?
तितलियाँ भी क्यों रंग जादुई,परों में हैं भरतीं ?
डाल-डाल क्यों रुकतीं,और फिर से हैं चलतीं ?
तितलियाँ भी क्यों रंग जादुई,परों में हैं भरतीं ?
डाल-डाल क्यों रुकतीं,और फिर से हैं चलतीं ?
कुछ-कुछ तुमने भी समझा है,और कुछ-कुछ मैंने भी जाना है।
कोयल कुहू-कुहू क्यों,मतवाले गीत है गए ?
पपीहे की पीहू-पीहू क्यों,यूँ शोर सा मचाए ?
डालियाँ पवन संग क्यों यूँ,झूम-झूम हैं जाएं ?
सर-सर के मदभरे से क्यों,गीत फ़ुसफ़ुसाएं ?
कुछ-कुछ तुमने भी समझा है,और कुछ-कुछ मैंने भी जाना है।
हरी-भरी चादर ओढ़ के.ये धरा क्यों इतराए ?
आकाश भी धरा पे क्यों,रीझा-रीझा सा जाए ?
क्षितिज पे लगें दोनों ही,साथ मिलते से जाएं ?
तराने प्रेम भरे से भला क्यों,ये संग गुनगुनाएं ?
कुछ-कुछ तुमने भी समझा है,और कुछ-कुछ मैंने भी जाना है।
इक शून्य से ये जन्मी और,विराटता है इसने पाई ,
ये सृष्टि कहाँ से चली,और कहाँ तक हमें ले आई ,
उत्थान,पतन,अमरत्व की,अजब सी ये कहानियां ,
रीतों,गीतों की जीवंत,खिलखिलाती हुई जवानियाँ ,
कुछ-कुछ तुमने भी समझा है,और कुछ-कुछ मैंने भी जाना है।
गुज़रता वक्त क्या है कहता,सुनो तो मन लगा के,
ध्यान से सुनो तो ज़रा,भावों का प्रेम-दीप जगा के,
कुछ आमंत्रण सा छुपा है,इन बहकती हवाओं में,
शायद राज़ उजागर हैं,हमारी-तुम्हारी वफाओं के,
कुछ-कुछ तुमने भी समझा है,और कुछ-कुछ मैंने भी जाना है।
कुछ-कुछ तुमने भी समझा है,और कुछ-कुछ मैंने भी जाना है।
- जयश्री वर्मा
बहुत खूब ...
ReplyDeleteइस जान्ने की प्रक्रिया में इंसान खुद को ... इक दूजे को जान लेता है और जीवन सरस हो जाता है ...
बहुत ही लाजवाब रचना ...
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका दिगंबर नासवा जी !🙏 😊
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरुवार 19 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमीना भारद्वाज जी "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मेरी कविता " कुछ-कुछ जाना है " को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। 🙏 😊
Deleteदोनों ने जाना है
ReplyDeleteदोनों ने समझा है
तभी चल पाता है ये ताना बाना। सुंदर रचना।
पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और
सादर आभार आपका रोहिताश जी !🙏 😊
Deleteअति मनभावन ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका अमृता तन्मय जी !🙏 😊
Deleteवाह!!सखी ,बहुत खूब!
ReplyDeleteमेरी इस कविता पर आपकी प्रतिक्रिया और स्नेहिल "सखी" सम्बोधन के लिए आपका सादर धन्यवाद शुभा जी !🙏 😊
DeleteBahut achha lekh hai.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका!🙏 😊
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