Friday, November 29, 2019

चाहत हो जाती हूँ


सप्तरंगी इंद्रधनुष,
खुश्बुएं हजार किस्म,
भिन्न रूप-आकार लिए,
खिलती हूँ,खिलखिलाती हूँ,
प्रकृति के फूलों की महक सी,
मनमोहक बनके दिलों में समाती हूँ,
जन्म से अंत तक बस रौनकें जगाती हूँ,
जब कभी मैं पुष्प सी मनोकामना हो जाती हूँ।

अपने मन-पंखों में,
कई रंग-आकार लिये,
यहाँ-वहाँ पवन सुगंध-संग,
घूम-घूम,दूर पुष्पों में रम जाना,
इतराना,खुद में ही खोए हुए इठलाना,
नयनों की इक कोमल कामना हो जाती हूँ,
के नेत्रों के रास्ते उतर,सभी दिलों में समाती हूँ,
जब कभी भी मैं तितली सी शोख़ चंचल हो जाती हूँ।

मधुर से गीत-सुर,
जादुई शब्द-जाल बुन,
लहरियों के उतार-चढ़ाव,
ऊँचे से ऊँचे और नीचे से नीचे,
रागों के आरोह से अवरोह तलक,
निम्न सुर से सप्तक की हर उठान तक,
हर जन मानस की मन-तन्द्रा पे छा जाती हूँ,
जब मैं मधुर संगीत की इक सुरलहरी हो जाती हूँ।

ऊँचे पर्वतों के हौसले,
गहरी सी सागर कि साँसें,
धैर्य के लहलहाते हरेभरे खेत,
रेगिस्तान की जलती जीवित रेत,
वृक्ष,पुष्प,झरने,बादलों का बहकना,
डूबते सूरज के रंग संग,पवन का महकना,
जीवनपूर्ण रिमझिम के संग खुशियां बढ़ाती हूँ,
जब मैं प्रेम और त्यागमयी धरती सी बन जाती हूँ।

                                                     - जयश्री वर्मा

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 01 दिसम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर धन्यवाद आपका यशोदा अग्रवाल जी!🙏😊

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  2. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका अनीता सैनी जी !🙏😊

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  3. बहुत सुन्दर कविता

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका ओंकार जी !🙏😊

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  4. सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार

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    1. सादर धन्यवाद आपका कामिनी सिन्हा जी !🙏 😊

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  5. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर, लाजवाब सृजन।

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    1. इस हौसलाअफ़्ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका सुधा जी !🙏 😊

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