Tuesday, June 5, 2018

फरेब कैसे हैं

वो जानते है सब कुछ,पर खुद पे गुमान किये बैठे हैं ,
दिलों के व्यापार खेलते हैं,और अनजान बने बैठे हैं ,
मेरे सब्र की इन्तहां भी,कोई कम नहीं,उनके हुस्न से ,
हम भी इंतज़ार में हैं,कब वो पूछें,अजी आप कैसे हैं ?


यूँ तो वो,रह-रह कर,चुपके,छुपके बेचैन नज़रों से देखें,
मिले नज़र तो,बेखयाली सी दिखा,अपने दुपट्टे से खेलें,
बनते यूँ हैं जैसे कि उन्हें,हमारी कोई तमन्ना ही नहीं ,
अजी जाने भी दीजिये,न पूछिए हुस्न के फरेब कैसे हैं।

माना हैं वो,नूरों में नूर,दिलकश ग़ज़ल,बहारों की बहार ,
हम इश्क हैं,उन्हें भी तो होगी हमारी नज़रों की दरकार ,
बेशक खुदा ने,बेशकीमती हीरे सा,हुस्न दिया है उनको ,
कम तो हम भी नहीं,पारखी हैं,हुनरमंद जौहरी जैसे हैं।

आखिर हम बिन,उनकी सारी खूबियां,किस काम की हैं,
कोई सराहने वाला न हो तो,ये रौनकें सिर्फ नाम की हैं,
यूँ तो चाहकर भी,हमारे वज़ूद को,वो नकार सकते नहीं,
अजी गर वो चाँद हैं,तो हम भी चकोर की चाह जैसे हैं।

                                                    -  जयश्री वर्मा









10 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.06.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2994 में दिया जाएगा

    हार्दिक धन्यवाद

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  2. बहुत ख़ूब इम्तिहान है सबर का ...
    प्रेम जीतेगा अंत में चाहे कोई हारे ...

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  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ११ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' ११ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया शुभा मेहता जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  4. वाह ...
    हर छंद लाजवाब है ...

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  5. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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