Thursday, October 4, 2018

आप चुप क्यूँ हैं ?

मित्रों मेरी यह रचना "दिल्ली प्रेस प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका सरिता अप्रैल-प्रथम 2019" में
प्रकाशित हुई है आप भी इसे पढ़ें। -



कुछ कहिये कि आप,यूँ चुप क्यूँ हैं ?
बदले हुए हवाओ के,यूँ रुख़ क्यूँ हैं ?
ऐसा भी क्या यूँ गुमसुम सा हो जाना ?
कि मौसमों का जैसे,रूठ ही जाना ?

के आज हवाओं में,गुनगुनाहट नहीं है ,
फूलों का खो सा गया,निखार कहीं है ,
तितलियाँ भी,सुस्त सी नज़र आती हैं ,
भवरों की अठखेलियां,नहीं भाती है।

के आपसे ही तो हमारी,ज़न्नत है जुड़ी,
कैसे समझाऊं,दिल में,बेचैनी है बड़ी ,
यूँ समझिये कि,सूरज में तेज नहीं है ,
धुंध के रुख का,आभास भेज रही हैं।

कि ये मायूसी,नहीं खिलती है आप पे ,
जैसे छाए हैं बादल,रौशनी के नाम पे ,
आपको नहीं पता,ये पल दुःख भरे हैं ,
जैसे खिले न फूल,और मुरझा गिरे हैं।

कि अजी आपको,मुस्कुराना ही होगा ,
इस गम का सबब,तो बताना ही होगा ,
क्या खता कोई हुई है मुझ दीवाने से ?
या फिर कोई शिकायत है ज़माने से ?

क्या ठिठक गए हैं रास्ते क़दमों के तले ?
या कि बंधन समाज के पड़ गए हैं गले ?
कि गुज़र ही जाएंगे,ये मौसमों के झोंके ,
ज़माने से तो,छुपा लूँगा मैं,बाहों में लेके। 
            
                                                         - जयश्री वर्मा



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