Monday, February 2, 2015

कुछ तो कहा है

कलियाँ अंगड़ाई भर-भर के मोहक रूप रख रहीं ,
फूलों की रंगीन सी छटा जैसे हर दृष्टि परख रही ,
खुशबू मनभावन सी भीनी-भीनी सी है बिखर रही ,
आखिर इन भवरों ने कलियों से कुछ तो कहा है।


हरियाली का जादू बिखेर देखो धरा श्रृंगार कर रही ,
पतझड़ की उदासीनता त्याग आँचल रंग भर रही ,
समृद्धि से भरी-भरी सी नव जीवनों को संवार रही ,
आखिर नीले एम्बर ने इस धरा से कुछ तो कहा है।

मेघों का अथक प्रयास है बूँदें वर्षा बन के झर रहीं ,
महीन-महीन धाराएं देखो नदियां बनके मचल रहीं  ,
कल-कल के सुर सजीले सजा के राग नए गुन रहीं ,
आखिर इस बदरिया से सागर ने कुछ तो कहा है।

केश काले उलझ-उलझ,उड़ चेहरे को हैं छेड़ रहे ,
बिंदिया,झुमके,कंगन,पायल यूँ शोर-जोर कर रहे ,
पलकें हैं झुकी-झुकी और मुखर शब्द क्यों मौन हैं ,
आखिर तो प्रियतम ने प्रिया से कुछ तो कहा है।

क्यों ऐसा लगे है सब तरफ जैसे साजिशें हजार हैं ,
चारों तरफ से घेर रही हो जैसे बहकी सी बयार है ,
मौसमों की हलचल में जैसे फितूर ही सा सवार है ,
सृष्टिकर्त्ता ने जैसे जवाँ दिलों से कुछ तो कहा है। 
                                 

                                                                                   ( जयश्री वर्मा )




14 comments:

  1. अति सुन्दर भावों का संचार करती अच्छी रचना।

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया अज़ीज़ जौनपुरी जी !

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  2. सुंदर भाव ..उत्कृष्ट अभिव्यक्ति

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    1. सादर धन्यवाद मोहन सेठी जी!

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    1. बहुत - बहुत धन्यवाद आपका R Vyas जी !

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  4. आज 07/ फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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    1. सादर आभार यशवंत यश जी !

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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    1. बहुत - बहुत धन्यवाद आपका ओंकार जी !

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  6. बहुत सुन्दर रचना सीधे दिल में उतर जाने वाली

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    1. सादर धन्यवाद संजय भास्कर जी !

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  7. बहुत ही सुंदर रचना प्रस्‍तुत करने के लिए धन्‍यवाद।

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    1. इस हौसलाफजाई के लिए आपका धन्यवाद कहकशां खान जी !

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