मित्रों! मेरी यह रचना दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन द्वारा प्रकाशित " सरिता " मार्च 2015 में प्रकाशित हुई है,आप भी इसे पढ़ें।
महफ़िल में अनजाना सा था व्यवहार दिखाया,
मित्रों! मेरी यह रचना जून (द्धितीय ) 2017 में पुनः प्रकाशित हुई।
जब नज़र मिली तब था तुमने नज़रों को फेरा ,
जब नज़र मिली तब था तुमने नज़रों को फेरा ,
पर रह-रह,फिर-फिर और रुक-रुक के देखा,
चेहरे पे अनजाने से थे भाव दिखाए ,
तुमने लाख छुपाए भाव मगर,
नज़रों में तो बात वही थी ।
महफ़िल में अनजाना सा था व्यवहार दिखाया,
तुम्हारी बातों में मेरा कोई भी जिक्र न आया,
तुम चहरे पर कोई शिकन भी न लाए,
पर जिन ग़ज़लों को छेड़ा तुमने ,
लफ़्ज़ों में तो बात वही थी ।
वही राहें सभी थीं पुरानी जानी और पहचानी,
जिन राहों पे कभी की थी हमने मनमानी,
तुम्हारा हर मोड़ पर रुकना और ठहरना,
फिर बोझिलता के संग कदम बढ़ाना,
बुझा-बुझा सा अहसास वही था।
चलो तुम्हारा यूँ नज़र फेरना मैंने माना जायज़,
तुम्हारे लफ्ज़ बेगाने थे ये भी माना जायज़,
राह बदलना चलो वो भी सब जायज़,
मगर ये झूठ न बोलो साथी कि-
तुमको मुझसे प्यार नहीं था।
तुमने नज़र जब फेरी थी तब आँसू थे उनमें,
लफ्ज़ भी तुम्हारे थे दर्द भरे और सहमे,
राहें जब बदलीं तब रुक-रुक के देखा,
पर ये सच तुम न छुपा सके थे,
कि-
तुमको मुझसे प्यार बहुत था,
तुमको मुझसे प्यार बहुत था,
अब सच कह दो न साथी-
तुमको मुझसे प्यार बहुत था।
जयश्री वर्मा
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अज़ीज़ जौनपुरी जी !
Deleteबहुत ही लाजवाब और बहुत ही सुंदर रचना , आपका आभार...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया नवज्योति कुमार जी !
Deleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteवक्त मिले तो मेंरे ब्लाग rajeshkavya.blogspot.com पर आप का स्वागत है।
सादर धन्यवाद आपका राजेश कुमार राय जी !
Deleteआभार आपका राजेन्द्र कुमार जी !
ReplyDeleteकविता पर प्रतिक्रिया के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद प्रतिभा वर्मा जी !
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआपका धन्यवाद महेन्द्र जी !
Deleteबहुत खूब ... वैसे भी प्यार को छुपाना मुश्किल होता है ... भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteआप ने सही कहा!धन्यवाद आपका दिगम्बर नासवा जी!
Deleteप्यार के एहसास में सनी नेह की बँधी डोर न जाने कब तक लिखवाती रहेगी
ReplyDeleteजब तक अस्तित्व में है शायद तब तक !बहुत-बहुत धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !
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