फूलों के रंगों की छटा कुछ हो चली है सुरमई,
वो भी दिल खोल के खिले जो थे पुष्प छुई-मुई,
कलियों की मुस्कुराहटें हो चलीं हैं रहस्यमयी,
भंवरों की गुनगुनाहट भी हो चली है मनचली।
हवाओं में भी कुछ-कुछ सिहरन सी जागी है,
बागों में बिखरीं चंचलताएं,संग नए साथी हैं,
हाथों में हाथ लिए गूढ़ विश्वास संग डोलते हैं,
साथ-साथ,जीने-मरने के वादे पक्के बोलते हैं।
धरा भी खुद पे रीझती,इठलाती सी है दिख रही,
यहाँ-वहाँ,जहाँ-तहाँ जादू सा जगाती फिर रही,
गेंदा,गुलाब,डहेलिया या गुलदाऊदी,सूरजमुखी,
रंग बिखेर दिए हैं सारे सब के सब तिलिस्मयी।
ऐसे में हर मन के भाव स्वतः ही खुल जाते हैं,
दिल की वीणा के तार स्वतः ही झनझनाते हैं,
बंधन सारे खुल गए,मन-तन्द्रा की तिजोरी के,
वो स्वप्न उजागर हुए,जो देखे थे कभी चोरी से।
मन में छुपाऊं उन्हें पर आतुर नैनों से झांकते हैं,
पारखी तो नैनों को पढ़ के प्रेम गहराई आंकते हैं,
स्वप्न हैं सजीले से कुछ लजीले व कुछ शातिर हैं,
ये वक्त की शिला पे चिन्ह लिखने को आतुर से हैं।
हृदय को मैं लाख रोकूँ कि भावों को यूँ न बहकाओ,
रह-रह के यूँ विचारों को तुम बेलगाम न भटकाओ,
पर दिल विवश हो कहता है कहीं से तुम आ जाओ,
के मेरे साथ सृष्टि की इन खूबसूरतीयों में खो जाओ।
- जयश्री वर्मा
वो भी दिल खोल के खिले जो थे पुष्प छुई-मुई,
कलियों की मुस्कुराहटें हो चलीं हैं रहस्यमयी,
भंवरों की गुनगुनाहट भी हो चली है मनचली।
हवाओं में भी कुछ-कुछ सिहरन सी जागी है,
बागों में बिखरीं चंचलताएं,संग नए साथी हैं,
हाथों में हाथ लिए गूढ़ विश्वास संग डोलते हैं,
साथ-साथ,जीने-मरने के वादे पक्के बोलते हैं।
धरा भी खुद पे रीझती,इठलाती सी है दिख रही,
यहाँ-वहाँ,जहाँ-तहाँ जादू सा जगाती फिर रही,
गेंदा,गुलाब,डहेलिया या गुलदाऊदी,सूरजमुखी,
रंग बिखेर दिए हैं सारे सब के सब तिलिस्मयी।
ऐसे में हर मन के भाव स्वतः ही खुल जाते हैं,
दिल की वीणा के तार स्वतः ही झनझनाते हैं,
बंधन सारे खुल गए,मन-तन्द्रा की तिजोरी के,
वो स्वप्न उजागर हुए,जो देखे थे कभी चोरी से।
मन में छुपाऊं उन्हें पर आतुर नैनों से झांकते हैं,
पारखी तो नैनों को पढ़ के प्रेम गहराई आंकते हैं,
स्वप्न हैं सजीले से कुछ लजीले व कुछ शातिर हैं,
ये वक्त की शिला पे चिन्ह लिखने को आतुर से हैं।
हृदय को मैं लाख रोकूँ कि भावों को यूँ न बहकाओ,
रह-रह के यूँ विचारों को तुम बेलगाम न भटकाओ,
पर दिल विवश हो कहता है कहीं से तुम आ जाओ,
के मेरे साथ सृष्टि की इन खूबसूरतीयों में खो जाओ।
- जयश्री वर्मा
आपकी लिखी रचना बुधवार 10 दिसम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteअवश्य ! सम्मान के लिए आपका सादर धन्यवाद !
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका अनामिका जी !
ReplyDeleteसुंदर कविता और बहुत सुंदर चित्र ॥
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत शुक्रिया नीरज कुमार नीर जी !
Deleteफूलों के रंगों की छटा कुछ हो चली है सुरमई,
ReplyDeleteवो भी दिल खोल के खिले जो थे पुष्प छुई-मुई,सुन्दर अभिव्यक्ति! आदरणीया जय श्री जी!
धरती की गोद
सादर धन्यवाद आपका संजय कुमार गर्ग जी !
Deleteमेरा ब्लॉग आपको पसंद आया इसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया Harekrishna ji ! अवश्य देखूँगी ! आपकी website पर आमंत्रित करने के लिए आपका धन्यवाद !
ReplyDeletebahut sunder rachna chitr aakarshit karta hai rachna padhne ko....
ReplyDeleteआप मेरी कविता के साथ मेरे द्वारा बनाई गई तस्वीर को भी पसंद करती हैं शुक्रिया ! आपको मेरी नई कविताओं के साथ नए चित्र भी देखने को मिलेंगे ! बहुत-बहुत धन्यवाद Pari M Shlok जी !
Deleteअरे वाह्ह सुंदर कविता और बहुत सुंदर चित्र आह्ह्ह ॥
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद संजय भास्कर जी !
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