आज तेरी यादों ने मन की राहों को ऐसे मोड़ा है ,
कि भरे जग में मुझे यूॅ वीरानियों में लाके छोड़ा है ,
घेरे हुए हैं मुझे चहुंओर से तेरे तमाम अफ़साने ,
वो तुम्हारा हॅसना,रूठना,मनाना जाने-अनजाने।
बेबस हो तुम्हारी यादों का हाथ पकड़ता जाता है ,
चला आया हूँ जहां पे सारी कोशिशें बेमानी सी हैं ,
ये जग सारा और उसकी ये जीवंतता पानी सी है।
कि इक सुख है अजीब इस बेरुखे एकाकीपन में ,
जहां मैं हूँ और बस साथ तेरे सपने हैं अंतर्मन में ,
लोग तो इसे मेरा अजीब दीवानापन ही कहते हैं ,
कुछ बेचारा,दुखियारा और कुछ परवाना कहते हैं।
वो नहीं समझते कि जीवन का एक रूप यह भी है ,
हम जैसों के लिए मौसम की धूप-छाँव ऐसी भी है ,
इस मेरे कल्पनालोक में मेरे जन्मों का प्रेम रहता है ,
जो हम सरीखों के किस्से दोहराता और कहता है।
यहां सुखद प्रेमभरी,अपनत्वभरी निजता की बातें हैं ,
जहां कुछ भी विलगाव नहीं बस उम्मीद से भरी रातें हैं ,
इस संसार में जहां विछोह,कटुता,धोखा और धृष्टता है ,
पर ये मेरा प्रेम-संसार सिर्फ प्रेम में ही रचता-बसता है।
मौसम,फूल,पंछी देखो सब के सब सुहाने से हो गए हैं ,
भागते हुए से विचार भी जहां के मनमाने से हो गए हैं ,
शुक्रिया है ऐ जमाने तेरा ! कि मुझे नए से तराने दिए हैं ,
शुक्रिया है तुम्हारा इस नई दुनिया से मिलाने के लिए।
- जयश्री वर्मा
सुन्दर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजिंदगी खुद में कितनी सच औ कितनी बेईमानी है
लाख ग़म दिए तनहाई के तूफ़ान की कहानी है
सादर
अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत-बहुत शुक्रिया अज़ीज़ जौनपुरी जी !
Deleteसादर धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी !
ReplyDeletesunder va bhaawpurn rachna. sunder chitr
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद Pari M Shlok जी !
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