तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
सूनी हो गईं गलियां सारी ,
अँखियाँ सूने पनघट सी हैं ,
सूनी गगरी सा मन मेरा ,
मन भाव सभी अब हारे हैं।
तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
मूक हो गई हंसी अब मेरी ,
सहमे होंठों के बोल सभी ,
खुशियां रूठ चुकीं मुझसे ,
गम के सब ओर खजाने हैं,
तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
स्वप्न हुआ बसंत का खिलना ,
पतझड़ का सा साम्राज्य हुआ ,
ये मन-तरु सूख चूका है मेरा ,
अब फिर से पुष्प खिलाने हैं ,
तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
हरी भरी थी डाल कभी यह ,
पंछी भी अक्सर आ जाते थे ,
गाये थे बुलबुल ने जो गीत ,
वो ही गीत मुझे दोहराने हैं ,
तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
मैं अभिशप्त दुःखी सीता सी ,
तुम कभी तो मिलने आओगे ,
जो भूल गए हो मनमीत मेरे ,
वो ही किस्से तुम्हें सुनाने हैं ,
अब आ जाओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
( जयश्री वर्मा )
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
सूनी हो गईं गलियां सारी ,
अँखियाँ सूने पनघट सी हैं ,
सूनी गगरी सा मन मेरा ,
मन भाव सभी अब हारे हैं।
तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
मूक हो गई हंसी अब मेरी ,
सहमे होंठों के बोल सभी ,
खुशियां रूठ चुकीं मुझसे ,
गम के सब ओर खजाने हैं,
तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
स्वप्न हुआ बसंत का खिलना ,
पतझड़ का सा साम्राज्य हुआ ,
ये मन-तरु सूख चूका है मेरा ,
अब फिर से पुष्प खिलाने हैं ,
तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
हरी भरी थी डाल कभी यह ,
पंछी भी अक्सर आ जाते थे ,
गाये थे बुलबुल ने जो गीत ,
वो ही गीत मुझे दोहराने हैं ,
तुम आओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
मैं अभिशप्त दुःखी सीता सी ,
तुम कभी तो मिलने आओगे ,
जो भूल गए हो मनमीत मेरे ,
वो ही किस्से तुम्हें सुनाने हैं ,
अब आ जाओ कि तुम बिन ,
मेरे सभी गाँव वीराने हैं।
( जयश्री वर्मा )
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