Tuesday, March 11, 2014

बदल रहे हैं हम

अब आज देखिये कुछ-कुछ तो बदल रहे हैं हम,
वक्त के तकाज़े पे कुछ-कुछ सम्हल रहे हैं हम,
कुदरत से की जो छेड़-छाड़ तो अच्छा नहीं होगा,
माता-पिता कहलाने का हक़ सच्चा नहीं होगा।

माता-पिता के प्यार पे हक़ दोनों का ही है समान,
फ़िर इस सच से भला हम क्यों बन रहे अनजान,
जो दिया ईश्वर ने,दोनों हाथों से उसे स्वीकारिये,
बेटा हो अथवा हो बेटी,दोनों को सामान संवारिये।

कल का भरोसा नहीं कोई?वृद्धावस्था की सोचते हैं,
भविष्य के भयवश हो वर्तमान को क्यों कोसते हैं ?
आँगन में चहकती चिड़िया के खेल सुखद निराले हैं,
कल्पना के डर से क्यूँ रोकें,सुख जो आने वाले हैं।

गर सच्चे हों आप तो दोनों नाम आपका कर जायेंगे,
बेटी को बनाया समर्थ तो,आप ही धन्य कहलाएंगे,
समर्थ बेटी भी बेटे के सामान घर का गौरव बढ़ाएगी,
परिवार,समाज और देश को नई राहों पे ले जाएगी।

देवियों के श्रद्धा रूप में ही न सिर्फ,नारियों को पूजिये,
उनके जीवन,उपस्थिति,सार्थकता को भी तो बूझिये,
सृष्टि की निगाह में तो,धर्म-जाति हैं सिर्फ स्त्री-पुरुष,
उत्तर तो स्वतः ही मिलेगा यदि बनकर सोचें मनुष्य।

                                                                                      ( जयश्री वर्मा )










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