मित्रों मेरी यह रचना " रंग भरे सपने " समाचार पत्र " अमर उजाला " की " रूपायन "में आज प्रकाशित हुई है, आप भी इसे पढ़ें !
तितली के पंखों सरीखे,रंग भरे सपने हों ,
नहीं किसी गैर के,बस सिर्फ मेरे अपने हों।
मन चाहे कहीं चलूँ,इस पार या उस पार को,
कोई न रोके और अब कोई भी न टोके मुझे,
मेरी सोच की लहरों से भरा सागर अथाह हो।
कब कहाँ रुकोगे ?अब कहाँ को जाते हो ?
कोई भी न बूझे मुझसे,कोई न सवाल हो ,
बाँहों को फैलाकर,अंजुली भर-भर ले लूं,
बूँद-बूँद पीलूं मैं ऐसी खुशियाँ अपार हों।
मेरी ही दुनिया हो और मेरा ही सागर हो,
इन्द्रधनुष के रंगों से भरी मेरी गागर हो,
पंछी बन उड़ चलूँ मैं,यहाँ-वहां जहाँ-तहाँ,
मेरे संसार में प्यार की,गलियां हज़ार हों।
शब्दों को बांध-बांध,मैं प्रेम गीत बुन डालूं,
जोड़-जोड़ रिश्तों को,आपस में सिल डालूं,
इंसानी दुनिया में,जहाँ मानवी ही नाते हों,
नफ़रत की फसल न हो,सौहार्द की बातें हों।
तितली के पंखों सरीखे,रंग भरे सपने हों,
नहीं किसी गैर के,बस सिर्फ मेरे अपने हों।
(जयश्री वर्मा )
really gr8 ma'am
ReplyDeleteThanks ! Jayshri patel ji !
Deletegood 1
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद आपका !
Deleteu r gr8 ma'am & wc & wc
Deleteबहुत -बहुत धन्यवाद आपका Jayshri patel जी !परन्तु ये wc का मतलब मुझे समझ नहीं आया ! wc - welcome या फिर कुछ और ?
Deleteजीतनी आपकी रचना लाइक कि हे वो अभी पढ़ी मेने बहोत जयदा अछा आप लिखती ही मेम
ReplyDeleteआप लोगों के प्रशंसा भरे शब्द ही हैं जिनके द्वारा मैं कुछ लिख कर आप लोगों को पढ़ा पा रही हूँ ! बहुत -बहुत धन्यवाद आपका Jayshri patel जी !
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