घुमड़ के,और घिर-घिर,जो मेघ आने लगे हैं,
ये तन-मन भिगा के,नई चेतना जगाने लगे हैं,
सुलगते हुए भावों को यूँ,शीतल कर डाला है,
उम्मीद की नई कोंपल,मन में,उगाने लगे हैं।
भागती-हाँफती राहें,अब ठहरने सी लगी हैं,
नई राहों के निशान,इंगित करने सी लगी हैं,
के बिखरने लगे थे लम्हे,सम्हलने की चाह में,
अब रुकने की इक छाँव,नज़र आने लगी है।
मौसमों की रुखाई ने,नया रुख जो मोड़ा है,
जीवंतता की तरफ,दिल का नाता जोड़ा है,
मुस्कानों ने उदासियों को,कहीं पीछे छोड़ा है ,
बागों से रिश्ता,अब बन रहा थोड़ा-थोड़ा है।
मौसमों की सरसराहटें,सन्देश नया लाईं हैं,
मन में सोई सी उम्मीदें,फिर से सुगबुगाई हैं,
फिर से बहक जाने को,मन मचलने लगा है,
अरसे बाद अरमां जागे हैं,जुबां गुनगुनाई है।
मुरझाया सा जीवन,शीतल फुहार चाहता था,
ये रातों के वीरानों में,स्नेहिल पनाह मांगता था,
ये तन-मन भिगा के,नई चेतना जगाने लगे हैं,
सुलगते हुए भावों को यूँ,शीतल कर डाला है,
उम्मीद की नई कोंपल,मन में,उगाने लगे हैं।
भागती-हाँफती राहें,अब ठहरने सी लगी हैं,
नई राहों के निशान,इंगित करने सी लगी हैं,
के बिखरने लगे थे लम्हे,सम्हलने की चाह में,
अब रुकने की इक छाँव,नज़र आने लगी है।
मौसमों की रुखाई ने,नया रुख जो मोड़ा है,
जीवंतता की तरफ,दिल का नाता जोड़ा है,
मुस्कानों ने उदासियों को,कहीं पीछे छोड़ा है ,
बागों से रिश्ता,अब बन रहा थोड़ा-थोड़ा है।
मौसमों की सरसराहटें,सन्देश नया लाईं हैं,
मन में सोई सी उम्मीदें,फिर से सुगबुगाई हैं,
फिर से बहक जाने को,मन मचलने लगा है,
अरसे बाद अरमां जागे हैं,जुबां गुनगुनाई है।
मुरझाया सा जीवन,शीतल फुहार चाहता था,
ये रातों के वीरानों में,स्नेहिल पनाह मांगता था,
आपसे जुड़ हृदय-भाव,कुछ मुखर हो चले हैं ,
अंगड़ाई ले मन मयूर,फिर मचलना चाहता है।
अपनी निगाहों से,आपने कहा तो कुछ ज़रूर है ,
मन पर काबिज़ हुआ आपके वज़ूद का सुरूर है ,
के इक हलचल सी रंगों की,जीवन पे मेरे छाई है ,
आखिर यूँ ही नहीं हो चला,मुझे खुद पे गुरूर है।
- जयश्री वर्मा
अंगड़ाई ले मन मयूर,फिर मचलना चाहता है।
अपनी निगाहों से,आपने कहा तो कुछ ज़रूर है ,
मन पर काबिज़ हुआ आपके वज़ूद का सुरूर है ,
के इक हलचल सी रंगों की,जीवन पे मेरे छाई है ,
आखिर यूँ ही नहीं हो चला,मुझे खुद पे गुरूर है।
- जयश्री वर्मा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 28 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete"सांध्य दैनिक मुखरित मौन मंच में " मेरी कविता " खुद पे गुरूर " को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दिव्या अग्रवाल जी ! 🙏 😊
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका सुशील कुमार जोशी जी !🙏 😊
ReplyDeleteसुंदर!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका विश्वमोहन जी !🙏😊
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
मेरी कविता "खुद पे गुरूर"को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद आपका दिलबागसिंह विर्क जी!🙏 😊
Deleteवाह!बेहतरीन सृजन हर बंद लाजवाब।
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका अनीता सैनी जी !🙏 😊
Deleteवाह बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर आभार आपका hindiguru जी !🙏😊
Deleteदोनों ही सृजन प्रशंसा के पात्र हैं - कविता भी एवं चित्र भी । अभिनंदन ।
ReplyDeleteमेरी कविता तथा चित्र दोनों की प्रशंसा के लिए आपका सादर धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी !🙏 😊
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका अनुराधा चौहान जी !🙏 😊
Deleteबहुत सुंदर गीत सुंदर शिल्प सुंदर भाव सुंदर शब्द संयोजन।
ReplyDeleteसादर अभिवादन आपका !🙏😊
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आलोक सिन्हा जी!🙏 😊
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ReplyDelete🙏 😊
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