मैं तुमसे मिली थी-
सूरज की लाली की गर्माहट में,
पुष्प-पंखुड़ी की मुस्कराहट में,
कैनवास के रंगों की लकीरों में,
शरारत से भरे नयनों के तीरों में,
झरने से उड़ती हुई शीतलता में,
मन की कमजोर सी अधीरता में,
गीतों की सुरीली सी सुरलहरी में,
दहकते गुलमोहर की दोपहरी में,
कल्पना की आसमानी उड़ान में
संध्याकाल धुंधले से आसमान में,
यादों की सड़क के हर मोड़ में,
क्षितिज के मिले-अनमिले छोर में,
मैं तुमसे मिली थी-
रात इठलाते चाँद की चमक में,
नदिया की लहरों की दमक में,
तितली के तिलस्मयी से पंखों में,
इंद्रधनुष के जादुई सप्त-रंगों में,
नवयौवना की खिलखिलाहट में,
कहानी की अंतरंग लिखावट में,
फूलों से महकती हुई अंजुरी में,
पेड़ से मदहोश लिपटी मंजरी में,
तालाब में तैरती हुई कुमुदनी में,
पंछी कतार छवि मनमोहिनी में,
हरसिंगार के दोरंगे से फूलों में,
और यौवन की मीठी सी भूलों में,
जब भी खूबसूरती की बात हुई-
मैं सच कहती हूँ-
मैं तुमसे मिली थी-
क्या तुमने अब भी नहीं पहचाना,
अरे मैं! हृदय की कोमल भावना।
- जयश्री वर्मा
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद मीना शर्मा जी !🙏😊
Deleteमेरी कविता "मैं तुमसे मिली थी" को "विश्व रंगमंच दिवस-रंग-मंच है जिन्दगी"( चर्चाअंक -३६५४) में स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी।🙏 😊
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका ओंकार जी !🙏😊
Deleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका सुमन कपूर जी !🙏 😊
Deleteसच कहती हूँ-
ReplyDeleteमैं तुमसे मिली थी-
क्या तुमने अब भी नहीं पहचाना,
अरे मैं! हृदय की कोमल भावना।
बहुत ही भावपूर्ण व संवेदनशील लेखन । भावों को पढ़ जाए, भावुक खुद हो जाए, मानव वही बन पाता है।
बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ आदरणीया जयश्री जी।
सादर धन्यवाद आपका पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी!🙏😊
Deleteअति सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका ऋचा जी।🙏 😊
Deleteवाह! अभिसार का सुंदर शब्द-चित्र। आभार और बधाई इतनी सुंदर रचना का।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका विश्वमोहन जी !🙏😊
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