सुन रे प्रिय! मैंने इक चिट्ठी,तेरे नाम लिखी,
इक दिन सूना,और अधूरी इक रात लिखी,
के जिसमें है व्यथा,कुछ कही,अनकही सी,
कुछ तो है सहनीय,और कुछ अनसही सी।
तमाम हलचल में भी,सूना सा दिन है बीता,
हंसी-ठहाकों बीच,मन का कोना रहा रीता,
यूँ कलियों,भवरों की,अठखेलियां थीं बड़ी,
पर मेरी ये मन बगिया तो,है सूनी सी पड़ी।
शाम लहरों के संग,खेलती देखी इक नैया,
कैसी बेफिक्र डोलती थी,संग था खेवईया,
भीड़-भरे जग में,है मेरा मन अकेला यहाँ,
बेबस सी नज़रें मेरी,तुम्हें ढूँढतीं यहाँ-वहाँ।
रात को चाँद के संग,तारों की ठिठोली थी,
पतंगे ने रौशनी संग,कई कसमें बोलीं थीं,
कैसे-कैसे ख़याल मचले,जो के न हुए पूरे,
रातें गुजरीं पलकों में,ख्वाब भी रहे अधूरे।
रोज के ये दिन रात मेरे,ऐसे ही गुज़रते हैं,
मेरे मन के भाव यूँ ही,वक्त से झगड़ते हैं,
तुम आओ तो जीवन की,ये जंग जीत लूँ मैं,
अपनी सारी प्रीत देकर,तुम्हें खरीद लूँ मैं।
मन उड़ेल दिया सारा,कुछ भी न सुहाता है,
तुम बिन तो मुझे,अब ये जहान नहीं भाता है,
सुन प्रिय! मैंने इक चिट्ठी,तेरे नाम है लिखी,
इस अधूरे से मन की,अधूरी सी चाह लिखीं।
- जयश्री वर्मा
इक दिन सूना,और अधूरी इक रात लिखी,
के जिसमें है व्यथा,कुछ कही,अनकही सी,
कुछ तो है सहनीय,और कुछ अनसही सी।
तमाम हलचल में भी,सूना सा दिन है बीता,
हंसी-ठहाकों बीच,मन का कोना रहा रीता,
यूँ कलियों,भवरों की,अठखेलियां थीं बड़ी,
पर मेरी ये मन बगिया तो,है सूनी सी पड़ी।
शाम लहरों के संग,खेलती देखी इक नैया,
कैसी बेफिक्र डोलती थी,संग था खेवईया,
भीड़-भरे जग में,है मेरा मन अकेला यहाँ,
बेबस सी नज़रें मेरी,तुम्हें ढूँढतीं यहाँ-वहाँ।
रात को चाँद के संग,तारों की ठिठोली थी,
पतंगे ने रौशनी संग,कई कसमें बोलीं थीं,
कैसे-कैसे ख़याल मचले,जो के न हुए पूरे,
रातें गुजरीं पलकों में,ख्वाब भी रहे अधूरे।
रोज के ये दिन रात मेरे,ऐसे ही गुज़रते हैं,
मेरे मन के भाव यूँ ही,वक्त से झगड़ते हैं,
तुम आओ तो जीवन की,ये जंग जीत लूँ मैं,
अपनी सारी प्रीत देकर,तुम्हें खरीद लूँ मैं।
मन उड़ेल दिया सारा,कुछ भी न सुहाता है,
तुम बिन तो मुझे,अब ये जहान नहीं भाता है,
सुन प्रिय! मैंने इक चिट्ठी,तेरे नाम है लिखी,
इस अधूरे से मन की,अधूरी सी चाह लिखीं।
- जयश्री वर्मा
रोज के ये दिन रात मेरे,ऐसे ही गुज़रते हैं,
ReplyDeleteमेरे मन के भाव यूँ ही,वक्त से झगड़ते हैं,
साथ चलते रिश्ते इतने मजबूत हो ही जाते हैं की एक दुसरे के बना अधूरे होते हैं ....
🙏 😊
Deleteआवश्यक सूचना :
ReplyDeleteसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html