मित्रों मेरी यह रचना "हम करें तो गुस्ताखी "सरिता जनवरी (द्वितीय) 2018 में प्रकाशित हुई है। यह आपके सम्मुख भी प्रस्तुत है।
आते-जाते मेरी राहों पर,आपका वो नज़रें बिछाना,
आते-जाते मेरी राहों पर,आपका वो नज़रें बिछाना,
पकड़े जाने पे वो आपका,बेगानी सी अदा दिखाना,
आप करें तो प्रेम मुहब्बत,जो हम करें तो गुस्ताखी।
काजल,बिंदी,गजरा,झुमके,ये लकदक श्रृंगार बनाना,
मन चाहे कोई देखे मुड़कर,देखे तो तेवर दिखलाना,
आप सजें तो हक़ आपका,जो हम देखें तो गुस्ताखी।
भीनी खुशबू,भीनी बातें,भीनी-भीनी सी,हलकी हँसी,
जो खिलखिलाहटें गूँजी आपकी,मैखाने छलके वहीँ,
हँसे आप तो महफ़िल रौनक,हम बहके तो गुस्ताखी।
प्रेम वृहद् है,प्रेम अटल है,प्रेम का पाठ है दिलों ने पढ़ा,
प्रेम धरा है,प्रेम गगन है,प्रेम से सृष्टि का ये जाल बुना,
इज़हार आपका,करम खुदा का,हम कहें तो गुस्ताखी।
- जयश्री वर्मा
बहुत सुन्दर रचना है
ReplyDeleteसादर बहुत-बहुत धन्यवाद आपका कविता रावत जी!
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteसादर आभार आपका ध्रुव सिंह जी !
Deleteवाह्ह्ह्
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका लोकेश नदीश जी !
Deleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका मीना भारद्वाज जी!
Deleteबहुत सुंंदर रचना!!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका शुभा जी !
Deleteबेहद सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आपका सुधा जी!
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बधाई
सादर आभार आपका ज्योति खरे जी !
DeleteHave you complete script Looking publisher to publish your book
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सादर धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह कमाल का लिखा है आपने। आपकी लेखनी की कायल तो पहले से ही थी मगर बीच के दिनों में सिलसिला टूट सा गया था। एक बार फिर जुड़कर अच्छा लग रहा है। लाजवाब
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !
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