जन्म लेने के साथ ही जन्मी,
मेरी पहचान इस दुनिया में,
अजब विस्मित करें ये बातें,
जीवन मेरा ख्वाहिशें उनकी,
तमाम उम्मीदों के संग पालें,
वही मेरे वही अपने।
मेरी पहचान इस दुनिया में,
अजब विस्मित करें ये बातें,
जीवन मेरा ख्वाहिशें उनकी,
तमाम उम्मीदों के संग पालें,
वही मेरे वही अपने।
उंगली पकड़ के यूँ चलना,
सदा,नहीं मंजूर मुझको तो,
मुझे आवाज़ दे बुलाती राहेँ,
खुद की तकदीर गढ़ने को,
कोई न पूछे मेरी ख्वाहिश,
वही रोना वही झगड़े।
सदा,नहीं मंजूर मुझको तो,
मुझे आवाज़ दे बुलाती राहेँ,
खुद की तकदीर गढ़ने को,
कोई न पूछे मेरी ख्वाहिश,
वही रोना वही झगड़े।
अचकचा के मैंने चुन ली हैं,
अपने अन्तर्मन की जो राहें,
किसी के रोके नहीं रुकना,
किसी के आगे नहीं झुकना,
कदम जिस भी ओर बढ़े मेरे,
वही मंजिल वही राहें।
अपने अन्तर्मन की जो राहें,
किसी के रोके नहीं रुकना,
किसी के आगे नहीं झुकना,
कदम जिस भी ओर बढ़े मेरे,
वही मंजिल वही राहें।
उम्र के मौसम फिर यूँ बदले,
आँखों में इंद्रधनुष भी मचले,
के दिलबर से हुईं तमाम बातें,
और तमाम बीतीं रंगीन रातें,
फिर वो इन्तजार सदियों का,
वही गाने वही नगमे।
आँखों में इंद्रधनुष भी मचले,
के दिलबर से हुईं तमाम बातें,
और तमाम बीतीं रंगीन रातें,
फिर वो इन्तजार सदियों का,
वही गाने वही नगमे।
सारी रात के,रहे वे रतजगे,
सपने सोए से,कुछ अधजगे,
ये झुके दिल मेरा किस ओर,
पुकारे उसे बिना ओर,छोर,
भटकन मृग मरीचिका सी,
वही मायूसी वही तड़पन।
सपने सोए से,कुछ अधजगे,
ये झुके दिल मेरा किस ओर,
पुकारे उसे बिना ओर,छोर,
भटकन मृग मरीचिका सी,
वही मायूसी वही तड़पन।
वही बिखरना मुहब्बत का,
वही हतप्रभ सी जिंदगानी,
फिर नाम दिया उसे धोखा,
वही हतप्रभ सी जिंदगानी,
फिर नाम दिया उसे धोखा,
यही है जवानी की कहानी,
बस वही हर बार का रोना,
वही फरेब वही बाहें।
बस वही हर बार का रोना,
वही फरेब वही बाहें।
फिर वही गृहस्थी की चक्की,
और कपड़े,रोटी में पिस जाना ,
वही नई पीढ़ी की फिर चिन्ता,
यूँ अधेड़ावस्था का आ जाना,
वही नई पीढ़ी की फिर चिन्ता,
यूँ अधेड़ावस्था का आ जाना,
वही जिम्मेदारियों का है रोना,
वही झंझट वही लफड़े।
वही झंझट वही लफड़े।
वही अंतिम छोर पे हूँ मैं खड़ा,
के विस्मित हुआ हूँ अब खुद से,
गलत क्यूँ चुन लिया ये जीवन,
कभी नहीं सोचा था ऐसा कुछ,
ये कैसा है छल ज़िंदगानी का,
वही अफसोस वही आँसू।
के विस्मित हुआ हूँ अब खुद से,
गलत क्यूँ चुन लिया ये जीवन,
कभी नहीं सोचा था ऐसा कुछ,
ये कैसा है छल ज़िंदगानी का,
वही अफसोस वही आँसू।
अजब सी पहेली है ज़िंदगानी,
एक सी लगे सबकी ही कहानी,
सुख-दुःख का बहता सा पानी,
कहीं जन्मे और कहीं बह चले,
बिन मंजिल की ये अजब यात्रा,
वही आना,वही जाना।
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ReplyDeletenumber listing what is my reverse lookup phone serach
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This one is awesome jaishree ji....Best of all your poems I have read till now...
ReplyDeleteकविता की सराहना लिए सादर धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !
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