Tuesday, September 20, 2016

ज़िन्दगी क्या है ?

ज़िन्दगी क्या है ?

क्या ज़िन्दगी सवाल है ?
शायद ये सवाल है------
मुझे किसने है भेजा?कहाँ से हूँ मैं आया ?
क्या उद्देश्य है मेरा?ये जन्म क्यूँ है पाया ?
कब तक मैं हूँ यहां?और कहाँ मैं जाऊँगा ?
क्या छूटेगा मुझसे?और क्या मैं पाऊँगा ?
अपना कौन है मेरा?और पराया है कौन ?
किससे बोलूँ मैं?आखिर क्यों रहूँ मैं मौन ?
जिंदगी प्रश्नों से बुना इक जाल है।
हाँ !ज़िन्दगी इक सवाल है !

क्या जिन्दगी खूबसूरत है?
शायद ये ख़ूबसूरत है------

अनन्त ब्रह्माण्ड में विचरती पृथ्वी ये निराली ,
हर अँधेरी रात्रि के उपरान्त सुबह की ये लाली ,
फूलों के संग खेलते हुए ये भँवरे और तितली ,
सप्तरंगी सा इन्द्रधनुष और चंचल सी मछली ,
मधुर झोंकों संग झूमती बगिया की हरियाली,
क्षितिज पे अम्बर से मिलती धरती मतवाली।
जिंदगी विधाता की गढ़ी मूरत है।
हाँ !ज़िन्दगी खूबसूरत है !

क्या ज़िन्दगी प्यार है?
शायद ये प्यार है------
रिश्तों का प्यार और सारे बंधनों का सार ,
पाने और चाहने की इक मीठी सी फुहार ,
हौसलों से हासिल इक जीत का उल्लास ,
दुःख,सुख,प्रेम का है ये अनोखा अहसास ,
दोनों हाथों में भरके बहार को समेट लेना ,
कुछ प्यार बांटना कुछ हासिल कर लेना।
जिंदगी प्रेम का अजब व्यापार है।
हाँ !ज़िन्दगी इक प्यार है !

क्या जिन्दगी तलाश है?
शायद ये तलाश है ------
लक्ष्य कोई ढूंढना और फिर पाने की प्यास,
सतत् कोशिशों का इक निरंतर सा प्रयास,
तलाश स्वयं की,जन्म-मृत्यु,लोक-परलोक,
क्या जाने दूँ ,क्या सम्हालूँ,किसको लूँ रोक,
ज़िन्दगी की तलाश में उलझ-उलझ गया मैं,
कभी खुद के अधूरेपन से सुलग सा गया मैं,
जिंदगी तो आती-जाती हुई श्वाश है।
हाँ! ज़िन्दगी इक तलाश है!

क्या ज़िन्दगी कहानी है?
शायद ये कहानी है ------
अनादि काल से जीते-मरते असंख्य अफ़साने,
इतिहास के संग जो सुने-कहे गए जाने-अंजाने,
हर जीवन इक दूजे से मिलती-जुलती कहानी है,
स्वयं से स्वयं को रचने की इक कथा अंजानी है,
हमारा भूत और भविष्य ही हमारी ज़िंदगानी हैं,
आज हम वर्तमान हैं जो कल हो जानी पुरानी हैं,
जिंदगी कुछ अपनी कुछ वक्त की मनमानी है।
हाँ !ज़िन्दगी इक कहानी है !

जिंदगी के सवालों को उलझाता-सुलझाता रहा,
जिंदगी की खूबसूरतियों में खुद को डुबाता रहा,
प्यार पगी सी गरमाहटों को हृदय में भरता रहा,
कुछ पाने की तलाश मैं अनवरत ही करता रहा,
अपूर्ण,अतृप्त,अनभिज्ञ सा क्यों महसूस होता है?
सब कुछ है पास फिर भी अन्तर्मन क्यों रोता है?
खूब पढ़ा,जाना,परखा फिर भी अजब ज़िंदगानी है,
जिंदगी की परिभाषा,अब भी उतनी ही अनजानी है।
जिंदगी की परिभाषा-
अब भी उतनी ही अनजानी है।

                                               ( जयश्री वर्मा )




2 comments:

  1. क्या ज़िन्दगी सवाल है ?
    शायद ये सवाल है-
    विस्तृत विश्लेषण ....अति सुन्दर

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    Replies
    1. सादर धन्यवाद! आपने जीवन विश्लेषण को पसंद किया और धन्यवाद इस लिए भी कि आपने मेरी रचनाओं को इतने वक्त बाद भी पढ़ा और उसपर अपने विचार दिए।

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