Monday, May 27, 2013

आपका ख़याल

मित्रों ! मेरी यह रचना दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन प्रा लिमिटेड,नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित " मुक्ता " अगस्त 2013 के अंक में प्रकाशित कि गई है , आप भी इसे पढ़ें।

आपकी बातों में कुछ न कुछ तो ख़ास है,
बड़ी ही मधुर हैं,लगें दिल के बहुत पास हैं।


कुछ-कुछ मीठा सा लगे आप के सवालों में,
जी चाहे चंपा बन गुंथ जाऊं आपके बालों में।

आपकी जो आँखें हैं,न जाने क्या बोलती हैं,
आपके दिल के भावों के भेद कई खोलती हैं।

आपके होंठ जैसे बातों के रस भरे पिटारे हों,
सुनना चाहूँगा,सब बातें,सवाल कितने सारे हों।

आपके लहराते आँचल में खुशबूएं हज़ार हैं,
ख्यालों  में लिपटी सी जैसे बसंत की बयार है।

के दिन तो चला जाता है,पर रात नहीं जाती है,
आपकी याद आकर,मन को खटखटाती है ।

इस कदर रच बस गयीं हैं आप मेरे जीवन में,
देखता हूँ दर्पण कभी,तो आप नज़र आती हैं।

झिझकता हूँ पर,दिल में मेरे इक ख़याल है ,
गर मैं संग चलूँ,तो आपको कोई ऐतराज है ?

                                                                  ( जयश्री वर्मा )

2 comments:

  1. बाहर ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.कोमेट्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें पथ्लो को कमेंट्स करने में परेशानी होता है.

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  2. रचना पर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद राजेन्द्र कुमार जी !

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