होली के कई रंगों में,रंगों के छंद घोल,
छंदों संग बहक कर,होली गीत गाइए,
छोटा-बड़ा छोड़,अपनत्व बीज रोपकर,
हंसिये-हंसाइये,थोड़े रूमानी हो जाइये।
सुबह-सुबह उठ कर,रंग गुलाल भर कर,
साले घर जाइये,थोड़ा बेईमानी हो जाइये,
बिना किसी झिझक के,सलहज बुलाइये,
गाल गुलाल मल कर,पक्का रंग चढ़ाइए।
गर ससुराल पहुचें तो,जहाँ कहीं छुपी हों,
सालियों को ढूँढ-ढूँढ के,आँगन में लाइए,
पत्नी का डर छोड़,लाल-पीले तेवर भूल,
रंग खूब लगाइये,ससुराल में छा जाइये।
लस्सी में भंग घोल,भंग संग डोल-डोल,
फगुआ की तान पर,थिरक-थिरक गाइये,
गुझिया की मिठास में,राग द्वेष भूलकर,
बस खाइए-खिलाइये,मेहमानी हो जाइये।
मर्यादाओं का रहे ख्याल और रिश्तों का हो मान,
बच्चों का हो स्नेह और बुजुर्गों का रहे सम्मान,
रिश्ते नए बनाइये और साथ पुराने भी निभाइए,
दिल रहें साफ़,रंग हों हाथ और होली मनाइये।
( जयश्री वर्मा )
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