हंसने दो हँसाने दो,नए गीत सार्थक बनाने दो,
सृष्टि की देन हूँ मैं,मुझे जीवन गुनगुनाने दो,
नन्ही सी निर्दोष हूँ,पापा-मम्मी तो बुलाने दो,
बेटी को सहेजो,अपनी पहचान तो बन जाने दो,
बापू मुझे आने दो।
पापा कह बोलूंगी,मम्मी आँचल संग खेलूंगी,
उंगली पकड़ तुम्हारी मैं ठुमक-ठुमक डोलूँगी,
मुझको मत रोको,अरे मुझको भी तो जीने दो,
इस जीवन संगीत में,सुर बनके घुल जाने दो,
बापू मुझे आने दो।
बच्चों संग मैं भी तो स्कूल पढ़ने जाऊँगी,
बड़ी होकर तुम्हारा मैं सम्मान ही बढ़ाऊँगी,
टीचर,पायलट या नेता बन के दिखाऊँगी,
डाक्टर,इंजीनिअर या फिर सेना में जाने दो,
बापू मुझे आने दो।
न रहूंगी मैं तो,राखी त्यौहार का क्या होगा ?
बेटी न होगी तो, बहन शब्द भी कैसे होगा ?
तुम्हारे आँगन की चिड़िया बन गुनगुनाने दो,
रंग -बिरंगे कपड़ों में, मुझे सपने सजाने दो,
बापू मुझे आने दो।
बेटी न होगी तो सोचो,देहरी बारात कैसे आएगी ?
कन्यादान और हल्दी की तो रस्म ही टूट जायेगी,
गर बेटी न हुई तो,घर में कभी बहू भी न आएगी,
दादी-नानी के नाम का मतलब तो आगे बढ़ाने दो,
बापू मुझे आने दो।
बेटी बन जनमूँगी संग रौनक भी तो लाऊंगी,
मीठी-मीठी बातों से तुम्हारी थकान मिटाऊँगी,
कन्या भ्रूण हत्या,ये अपराध खुदसे न होने दो,
अपनी ही रचना को,स्वयं से ही खो न जाने दो,
बापू मुझे आने दो।
( जयश्री वर्मा )
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