Wednesday, July 20, 2022

आपके ये दो नैना


ये कहना कुछ चाहें,कुछ और ही कह रहे हैं,
आपके ये दो नैना अब,दगाबाज़ हो चले हैं,
तभी तो सबसे नज़रें मिलाने से कतराते हैं,
ये कुछ-कुछ शातिर,और बेईमान हो चले हैं।

के होठों ने शब्दों की,जादूगरी नई सीखी है, 
आपकी बातें,कुछ रहस्यमई सी हो चली हैं,
बोल कम हैं,अब मुस्कान से काम ज्यादा है,
मुस्कान भी कुछ अलग अंदाज़ हो चली है।

गुनगुनाने,खिलखिलाने का,नया सा अंदाज़ है,
चूड़ियाँ और पायल भी,जालसाज़ हो चलीं हैं, 
खूबसूरतियाँ जैसे,तलाशती हों अपने ही मायने,
ये माथे पर झूलती लट,इक ग़ज़ल हो चली है।

के पलक क्या उठी,ये मौसम बहक सा गया है,
और होंठों पर जैसे,सुर्ख पलाश दहक रहा है,
लौंग का लश्कारा भी तो,हक से दमक रहा है
आप आज के वक्त की,नई पहचान हो चले हैं।
  
यूँ  उठ जाना बीच महफ़िल,चल देना बेख़याल,
के आप जहाँ से गुज़रे,अजब समां बाँध चले हैं,
ज़न्नती फ़रिश्ते भी,नहीं ठहरते हैं,आपके आगे,
आप शायर की,छलकती सी रुबाई हो चले हैं।

के खूबसूर्तियों ने गढ़ी है,शख्सियत ये आपकी,
जैसे बात बेला-ख़ुश्बू,चाँद-तारों भरी रात की,
कलम न लिख सकेगी,ऐसा रूप तिलस्मयी सा,
आप इस कवि की,कल्पना से इतर हो चले हैं।

                                                                      - जयश्री वर्मा  

Wednesday, July 6, 2022

तुम नहीं समझोगे


काश! तुम समझते,इस दिल की ये लगन मेरी ,
रह-रह तुम पे रीझना,और ये मन की अगन मेरी,
जब याद में सुलगना ही,सार्थक सा लगने लगे ,
हर पल कोई इच्छा जगे,बुझे और फिर से जगे।

कुछ यूँ हुआ है कि,मन जैसे हुआ है सूरजमुखी ,
तुम सूरज सरीखे,जिसे निहार होती हूँ मैं सुखी ,
इक अजीब से,अव्यक्त अहसास संग जीती हूँ ,
तुम्हें देखके तुम्हारी छवि को,मैं बूँद-बूँद पीती हूँ।

ऐसा लगने लगा है,मैं हूँ इक नदिया विकल सी ,
तुम सागर सरीखे,मैं तुमसे मिलने को अधीर सी,
अतृप सी दौड़ती,मचलती,छलकती हुई आती हूँ ,
तुम्हारे एहसास संग अपना सार सम्पूर्ण पाती हूँ।

तुम जैसे बन गए हो चाँद,मेरे इस मन आसमां के ,
तुम्हें चकोर बन निहारना,जैसे सुख सारे जहां के ,
हर रोज़ के इंतज़ार में मैं,पल-छिन यूँ बिताती हूँ ,
के तुम्हारी आने की राह पर,मैं पलकें बिछाती हूँ।

क्या समझा है कोई,इस प्रेम का मतलब क्या है ?
जीवों में जान,फूलों में खुश्बू,और ये चाहत क्या है ?
दैहिक न समझो इसे,ये आत्माओं का ही गंतव्य है,
ये ही तो यथार्थ है,ये ही जीवन जीने का मंतव्य है।  

                                                                  - जयश्री वर्मा