Monday, April 5, 2021

कह दीजिये


मित्रों ! मेरी यह रचना दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन प्रा० लिमिटेड द्वारा प्रकाशित पत्रिका " मुक्ता " में प्रकाशित हुई है ! आप भी इसे पढ़ें -



जो होंठों तक गर बात आई,तो कह दीजिये,
के जो दिल अपना सा लगे,उसमें रह लीजिए।

न आएगा यूँ ऐसा सन्देश,बार-बार प्यार का,
यौवन की उमंग और,ऐसा मौसम बहार का,
गर जो खिल रहा हो फूल जीवन की डाल पर,
तो झूमने,महकने और बहकने उसे दीजिए।

इन्तजार नहीं करता कोई किसी का उम्र भर,
रस में भीगे हुए पल,छिन,दिन,ये शामो-सहर,
समेट लो ये सब आंचल में,न बिखरने दो इसे,
गर हो अपनेपन का आभास,तो ठहर लीजिये।

नज़र उठ जाती है,और ठहर जाती है किसी पर,
के कुछ और नहीं है,ये संकेत है,कुछ कहता सा,
इन दौड़ते-हाँफते हुए,जीवन के सवालों के लिए,
स्वछंदता को किसी बंधन में,बंध जाने दीजिए।

ये जो नज़ारे हैं,पल रहे हैं,पलकों की छाँव तले,
साकार होने को हैं बेताब से,बस तुम्हारे ही लिए,
कैसी झिझक,कौन सी गुत्थी है,जो सुलझती नहीं,
बीन के ये सारी खुशियाँ,जीवन में भर लीजिये।  

जो होंठों तक गर कोई बात आई,तो कह दीजिये,
जो दिल कोई अपना सा लगे,उसमें रह लीजिए।

                                                                   - जयश्री वर्मा