Friday, June 19, 2020

हमने छोड़ दिया

अपने दिल की गहराइयों में,हम डूबे भी उतराए भी, 
जो ज़ख्म मिले,कुछ दिखाए,कुछ खुद सहलाए भी, 
वो अनजान ऐसे बनके रहे,जैसे कुछ जानते ही न हों,
हमने भी दिल की राहों पे,ख्वाहिशों को छोड़ दिया। 
 
मौसम कई आए और,मन झिझोड़ के चले भी गए,
हम मुस्कुराए भी अकेले,कभी आंसुओं में डूब गए,
कई हादसे रह-रह कर,मेरे दिल के साथ ऐसे गुज़रे,    
के हमने भी दिन-रात का,हिसाब रखना छोड़ दिया। 

कभी सोचा वो मिलेंगे तो,ये कहेंगे और ऐसे कहेंगे,
शिकवे सारे उनकी बेख़याली के,गिना के ही रहेंगे,
कहेंगे कि किस तरह से,हम उनके गम में रहे डूबे,  
उलाहने बढ़े इस कदर,के सब सोचना छोड़ दिया। 

के उनको पा लेने की,बड़ी शिद्दत से तमन्ना की मैंने, 
रातें पलकों में काटीं,बेचैन हो के करवटें बदलीं मैंने, 
बार-बार दर्पण से,अपनी खूबसूरती की गवाही पूछी, 
अब उनकी निगाह से,खुद को आंकना छोड़ दिया।  

वक्त गुज़रा और,अपनी नादानियों पे हंसी भी आई, 
के उम्र की एक लहर जब गुज़री,तो दूसरी भी आयी, 
मेरी वफ़ाएं,मेरी मोहब्बत,मेरी ख्वाहिशें मेरी ही रहीं, 
अब हमने अपनी यादों में उन्हें बुलाना ही छोड़ दिया। 

                                                          - जयश्री वर्मा  

4 comments:

  1. सादर धन्यवाद आपका कुलदीप ठाकुर जी मेरी कविता "हमने छोड़ दिया" को पांच लिंकों का आनंद ब्लॉग पर शामिल करने के लिए ! 🙏😊

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  2. I am really enjoying reading your well written blog, we at reliable packers and movers in bangalore are really grateful for your blog post, keep sharing.

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