सुनो तो! लफ्ज़ हैं अनेकों,और ये बातें हैं असंख्य ,
तुम्हारे,मेरे हृदय के बीच,धड़कते भाव है अनंत ,
इन भावों को मिल जाने दो,न रहने दो अनजान ,
गर जो तुम मेरी सुनोगे,तो अफ़साने बनेंगे और ।
धरा की रहस्यमई,अंगड़ाइयों के ये नवीन से ढंग ,
के चलो गुनगुनाएं तराने,इन वादियों में खो जाएं ,
गर मेरी नजर से देखो,तो ये बहारें दिखेंगी और।
रात-दिन,और इस साँझ संग,धुंधलके का घुलना ,
क्षितिज पे खोए से,धरती-आकाश का ये मिलना ,
कहना इक दूजे से,कि तुम हरदम ही संग रहना ,
विचारों में,मुझ संग बहोगे,तो एहसास होंगे और।
कहना इक दूजे से,कि तुम हरदम ही संग रहना ,
विचारों में,मुझ संग बहोगे,तो एहसास होंगे और।
ये बातें,ये मचलना,और ये हंसना-खिलखिलाना,
ये बेख़याली,हक़ जताना और ये रूठना-मनाना,
ये बेख़याली,हक़ जताना और ये रूठना-मनाना,
पलकें,ये गेसू घनेरे,ये हथेलियों में चेहरा छुपाना ,
मेरे नाम करोगे तो ज़िन्दगी के गीत ढलेंगे और।
मेरे नाम करोगे तो ज़िन्दगी के गीत ढलेंगे और।
मुझे सौंप दो,ये ख़ूबसूरती के,छलकते से सागर ,
ज़िन्दगी का सफर,सनम! लम्बा,दुरूह है मगर ,
मैं परवाना नहीं,जो बीच राह,साथ छोड़ूँ तुम्हारा ,
साया बनूँगा,संग चलूँगा,राहें खुशनुमा होंगी और।
कुछ भी कहो ये दिलीभाव समझते तो तुम भी हो,
मौसम के प्यार की पुकार परखते तो तुम भी हो,
इस कदर अनजान बनके छुपने से क्या फायदा ,
अपने दिल की सुनोगे तो बंधन के रंग बनेंगे और।
मैं परवाना नहीं,जो बीच राह,साथ छोड़ूँ तुम्हारा ,
साया बनूँगा,संग चलूँगा,राहें खुशनुमा होंगी और।
कुछ भी कहो ये दिलीभाव समझते तो तुम भी हो,
मौसम के प्यार की पुकार परखते तो तुम भी हो,
इस कदर अनजान बनके छुपने से क्या फायदा ,
अपने दिल की सुनोगे तो बंधन के रंग बनेंगे और।
- जयश्री वर्मा