Saturday, June 27, 2020

छलकते से सागर


सुनो तो! लफ्ज़ हैं अनेकों,और ये बातें हैं असंख्य ,
तुम्हारे,मेरे हृदय के बीच,धड़कते भाव है अनंत ,
इन भावों को मिल जाने दो,न रहने दो अनजान ,
गर जो तुम मेरी सुनोगे,तो अफ़साने बनेंगे और ।

ये बारिशें,ये वादियाँ,और ये फूलों के अदभुत रंग ,
धरा की रहस्यमई,अंगड़ाइयों के ये नवीन से ढंग ,
के चलो गुनगुनाएं तराने,इन वादियों में खो जाएं ,
गर मेरी नजर से देखो,तो ये बहारें दिखेंगी और। 

रात-दिन,और इस साँझ संग,धुंधलके का घुलना ,
क्षितिज पे खोए से,धरती-आकाश का ये मिलना ,
कहना इक दूजे से,कि तुम हरदम ही संग रहना ,
विचारों में,मुझ संग बहोगे,तो एहसास होंगे और। 

ये बातें,ये मचलना,और ये हंसना-खिलखिलाना,
ये बेख़याली,हक़ जताना और ये रूठना-मनाना,
पलकें,ये गेसू घनेरे,ये हथेलियों में चेहरा छुपाना ,
मेरे नाम करोगे तो ज़िन्दगी के गीत ढलेंगे और।

मुझे सौंप दो,ये ख़ूबसूरती के,छलकते से सागर ,
ज़िन्दगी का सफर,सनम! लम्बा,दुरूह है मगर ,
मैं परवाना नहीं,जो बीच राह,साथ छोड़ूँ तुम्हारा ,
साया बनूँगा,संग चलूँगा,राहें खुशनुमा होंगी और।

कुछ भी कहो ये दिलीभाव समझते तो तुम भी हो,
मौसम के प्यार की पुकार परखते तो तुम भी हो,
इस कदर अनजान बनके छुपने से क्या फायदा ,
अपने दिल की सुनोगे तो बंधन के रंग बनेंगे और।


                                                       - जयश्री वर्मा








Friday, June 19, 2020

हमने छोड़ दिया

अपने दिल की गहराइयों में,हम डूबे भी उतराए भी, 
जो ज़ख्म मिले,कुछ दिखाए,कुछ खुद सहलाए भी, 
वो अनजान ऐसे बनके रहे,जैसे कुछ जानते ही न हों,
हमने भी दिल की राहों पे,ख्वाहिशों को छोड़ दिया। 
 
मौसम कई आए और,मन झिझोड़ के चले भी गए,
हम मुस्कुराए भी अकेले,कभी आंसुओं में डूब गए,
कई हादसे रह-रह कर,मेरे दिल के साथ ऐसे गुज़रे,    
के हमने भी दिन-रात का,हिसाब रखना छोड़ दिया। 

कभी सोचा वो मिलेंगे तो,ये कहेंगे और ऐसे कहेंगे,
शिकवे सारे उनकी बेख़याली के,गिना के ही रहेंगे,
कहेंगे कि किस तरह से,हम उनके गम में रहे डूबे,  
उलाहने बढ़े इस कदर,के सब सोचना छोड़ दिया। 

के उनको पा लेने की,बड़ी शिद्दत से तमन्ना की मैंने, 
रातें पलकों में काटीं,बेचैन हो के करवटें बदलीं मैंने, 
बार-बार दर्पण से,अपनी खूबसूरती की गवाही पूछी, 
अब उनकी निगाह से,खुद को आंकना छोड़ दिया।  

वक्त गुज़रा और,अपनी नादानियों पे हंसी भी आई, 
के उम्र की एक लहर जब गुज़री,तो दूसरी भी आयी, 
मेरी वफ़ाएं,मेरी मोहब्बत,मेरी ख्वाहिशें मेरी ही रहीं, 
अब हमने अपनी यादों में उन्हें बुलाना ही छोड़ दिया। 

                                                          - जयश्री वर्मा  

Thursday, June 4, 2020

जुस्तजुएँ हज़ार हैं



माँ-बाप से चाहत है हर क्षण दुलार की ,  
मित्र संग अटूट गलबहियों के हार की , 
हंसी,खेल,लड़कपन,आनंद हो अपार, 
बचपन न सहे कभी भी दुःखों का भार,
चाहे बस खुशियों से भरा जीवन संसार 
आशा,उम्मीदों से सजा भविष्य का द्वार,
ये ज़िन्दगी है इक स्वप्निल उड़ान,और जुस्तजुएँ हजार हैं। 

जवाँ सपनों संग जवाँ सारा जहान है ,
आसमान से ऊँचे दिल के अरमान हैं ,
हँसी दिलकश कोई,अंतर्मन झिंझोड़े ,
साथी की तलाश को उमंगें जब मोड़ें, 
पीढ़ियाँ सहेजकर,उनको सम्हालना ,
अपना सब भूल उनके ख्वाब पालना,
ये ज़िन्दगी बनी इक ज़िम्मेदारी और जुस्तजुएँ हज़ार हैं। 

बीती जवानी और बीते दिन सुनहरे,
ख़ुशी की चाहत थी,घाव मिले गहरे,
तोलता हूँ जब जीवन,कैसा बीता है,
कितना ये भरा और कितना रीता है,
घूमा इन हांथों में रेत सा समय लिए,
प्रयास अथक,पर हाथ खाली से हुए,
ये ज़िन्दगी बनी इक रिक्तता और जुस्तजुएँ हजार हैं। 

आँखें हैं मुंद रहीं,धुंधलाते से विचार हैं,
फरेब सब लग रहा,कैसी जीत-हार है,
कैसे हक़ से रहा मेरा-मेरा कहते हुए,
ऐसा क्यों लग रहा मुद्दतें हुईं जिए हुए,
सब यहीं छूट रहा ये मन क्यूँ रंजीदा है,
मेरा क्या था जग में,सवाल ये जिन्दा है,
के ये साँसें हैं गिनी चुनी और सवाल कई हज़ार हैं। 

कुछ साँसें जो बढ़ जाएं ऐसा कर लूँगा,
जो नाते तोड़े थे स्नेह से फिर भर दूंगा ,
अहम् के आगे मैंने सब बौना माना था,
हठ और गर्व जिया सब आना-जाना था,
फिर इच्छा जागी है,बचपन में जाने की,
खो जो दिया कहीं,वो फिर से पाने की,
पर अब साँसें हैं उखड़ रहीं और जुस्तजुएँ हज़ार हैं। 

                                                      - जयश्री वर्मा