सच्चाई,सुकून,भरोसा,ये जीवन की खुश्बुएं हैं,
किसी से गर जो मिले,तो उसे भुलाते नहीं हैं,
ख्वाबों में जो खोया निश्छल,मुस्कुरा रहा हो,
ऐसी नींद से,उसको कभी भी,जगाते नहीं हैं।
जो कोई रात-रात जागा हो,इंतज़ार में तुम्हारी,
उससे मुख मोड़के,कभी भी कहीं जाते नहीं हैं,
जिसकी हँसी में,बसी हों,सारी खुशियाँ तुम्हारी,
उसके माथे पे,शिकन कभी भी,बनाते नहीं हैं।
जो साया बनकर आया हो,जन्म भर के वास्ते,
दोष उसके,कभी भी किसी से,गिनाते नहीं हैं ,
तुम्हारे घर की इज़्ज़त,तुम्हारी ही तो पहचान है,
सड़क पे उसकी बात कभी भी,लाते नहीं हैं ।
धोखा,झूठ और फरेब,जीवन के कलंक ही हैं,
प्रेम की नाव को मझधार कभी,डुबाते नहीं हैं ,
के गलत काम करने से पहले,सोचना कई बार ,
इंसानियत को कभी भी,दागदार बनाते नहीं हैं।
गम को भले ही भुला देना,काली रात जान के,
ख़ुशी के,उजले-लम्हे कभी भी,भुलाते नहीं हैं,
के दोस्ती के नाम,जो हाजिर हो,हर वक्त पर,
ऐसे रिश्ते में,शक़ की दीवार,यूँ उठाते नहीं हैं।
सुख-दुःख के दिन-रात तो,आते-जाते ही रहेंगे,
कभी हिम्मत नहीं हारते,कभी घबड़ाते नहीं हैं,
के तमाम ज़ख्म दिए हों,जिन रिश्तों ने बार-बार,
उन रिश्तों को गाँठ जोड़-जोड़,चलाते नहीं है।
( जयश्री वर्मा )