Monday, March 4, 2019

ये अजीब भटकाव

रोज सूरज का आना,और दिन का चढ़ना ,
वही किरणों का धरती पे,धीरे-धीरे बढ़ना ,
वही सड़कों पे दौड़ते हुए,लोग इधर-उधर ,
भरते हुए स्कूल-दफ्तर,खाली से होते घर।

बाजारों का शोर-शराबा,सामानों के दाम,
लेते-देते हुए लोगबाग,बस काम ही काम ,
संतुलन का कर हुनर,नट दिखाता खेला ,
जैसे साँसों संग जूझता,जिंदगी का मेला।

मनमानी की सबने,खुमारी में जवानी की,
कुछ को है रुलाया,और कुछ संग हंसी की,
जैसे किसी के हाथों डोर है,हमें नचाने की ,
थिरकती कठपुतलियाँ,हम है जमाने की। 

साँसों का ये ज्वार-भाटा,उतरता और चढ़ता ,
ऐसे ही बीते जीवन,यूँ मौत की ओर बढ़ता ,
रोज की ये कहानी,और रोज का ये दोहराव,
कुछ न हासिल होने का,ये अजीब भटकाव।

दुःख-सुख,हँसी-आँसू,कुछ खोना और पाना ,
इसी सब में भटक रहा है,ये सारा ही ज़माना,
जीवन इक अतृप्त खेल,अनबूझा,अनजाना ,
ये जन्म से मरण तक का,है अजीब हर्जाना।

बचपन से बुढ़ापे की दौड़ में,हर दिन है जीना,
अनुकूल सब नहीं मिलेगा,गरल भी होगा पीना,
के हार-जीत की हाट है ये,लेना-देना तो पड़ेगा,
तभी तो अमूल्य जीवन ये,अनुभवों में ढलेगा।


                                                - जयश्री वर्मा




8 comments:

  1. बचपन से बुढ़ापे की दौड़ में,हर दिन है जीना,
    अनुकूल सब नहीं मिलेगा,गरल भी है पीना,
    हार-जीत की हाट है ये,लेना-देना तो पड़ेगा,
    तभी तो अमूल्य जीवन,अनुभवों में ढलेगा।

    जीवन दर्शन करता बहुत ही सुंदर रचना ,स्नेह

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    1. सादर धन्यवाद आपका कामिनी सिन्हा जी !🙏 😊

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  2. मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ...सुंदर रचना...आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है..... 

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    1. सादर धन्यवाद आपका संजय भास्कर जी !🙏 😊

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  3. सुंदर लेखन के लिए बधाई।

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    1. सादर धन्यवाद आपका दीपशिखा जी ! 🙏 😊

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  4. Ration Card
    आपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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    1. सादर धन्यवाद आपका 🙏 😊

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