मित्रों मेरी यह रचना "हम करें तो गुस्ताखी "सरिता जनवरी (द्वितीय) 2018 में प्रकाशित हुई है। यह आपके सम्मुख  भी प्रस्तुत है।  
 आते-जाते मेरी राहों पर,आपका वो नज़रें बिछाना,
आते-जाते मेरी राहों पर,आपका वो नज़रें बिछाना,  
 आते-जाते मेरी राहों पर,आपका वो नज़रें बिछाना,
आते-जाते मेरी राहों पर,आपका वो नज़रें बिछाना,  
पकड़े जाने पे वो आपका,बेगानी सी अदा दिखाना,  
आप करें तो प्रेम मुहब्बत,जो हम करें तो गुस्ताखी। 
काजल,बिंदी,गजरा,झुमके,ये लकदक श्रृंगार बनाना,  
मन चाहे कोई  देखे मुड़कर,देखे तो तेवर दिखलाना,  
आप सजें तो हक़ आपका,जो हम देखें तो गुस्ताखी।
भीनी खुशबू,भीनी बातें,भीनी-भीनी सी,हलकी हँसी, 
जो खिलखिलाहटें गूँजी आपकी,मैखाने छलके वहीँ,  
हँसे आप तो महफ़िल रौनक,हम बहके तो गुस्ताखी।
प्रेम वृहद् है,प्रेम अटल है,प्रेम का पाठ है दिलों ने पढ़ा,   
प्रेम धरा है,प्रेम गगन है,प्रेम से सृष्टि का ये जाल बुना, 
इज़हार आपका,करम खुदा का,हम कहें तो गुस्ताखी।
                                                   - जयश्री वर्मा 
